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________________ 349 समझाया गया है । इसके अन्त में महावीर वाणी के रूप में लगभग सौ श्लोकों का संग्रह श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परात्रों के मान्य ग्रन्थों से किया गया है । 2. श्रमण महावीर - - मुनि नथमल :- इस कृति में भगवान महावीर के जीवन का ऐसा चित्र है जिसमें श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा की भेद रेखायें अव्यक्त रही हैं और उनका साधनामय जीवन का विराट व्यक्तित्व पक्ष उभर कर आया है । इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि भगवान महावीर को दैवीकरण से दूर रखकर मानव की भूमिका से देखा गया है । ध्यान साधना आदि की प्रतिक्रियाओं से उनका व्यक्तित्व क्रमशः प्रारोहण होता हुआ अंत में अपने लक्ष्य तक पहुंच गया है । यह ग्रन्थ काल्पनिक नहीं है लेकिन दिगम्बर और श्वेताम्बर के आधार ग्रन्थ, सूत्र और आलेखन आदि 250 प्रामाणिक स्रोतों के अध्ययन के बाद लिखा गया है। इसकी प्रामाणिकता इससे और बढ़ जाती है कि सारे प्रयुक्त ग्रन्थों के संदर्भ परिशिष्ट में दिए गए हैं। महावीर का जीवन इतिहास, महावीर की आध्यात्मिक साधना और महावीर की खोज का एक ऐसा सुस्वादु मिश्रण इस ग्रन्थ में है कि आप इसे पढ़ना प्रारम्भ करेंगे तो पढ़कर ही उठेंगे और अनुभव करेंगे कि पने महावीर की हजार-हजार भव्य प्रस्तर मूर्तियों के अन्तराल को झांक लिया है और महावीर आपके सामने एक दम निकट खड़े हैं । 3. भिक्षु विचार दर्शन - मुनि नथमल :- प्रस्तुत कृति में 7 अध्याय हैं । उनमें प्राचार्य भिक्षु के सिद्धान्तों, मन्तव्यों, विचारों एवं निष्कर्षों का गहराई से प्रतिपादन हुआ है। आचार्य भिक्षु क्रान्तद्रष्टा थे 1 प्रस्तुत कृति में उनके क्रान्ति बीज तथा साध्य - साधन शुद्धि की सूक्ष्म मीमांसा की गई है। रोचक शैली में लिखा गया यह ग्रन्थ आचार्य भिक्षु के जीवन और दर्शन को समग्रता से प्रस्तुत करने के साथ-साथ जैन दर्शन की कई उलझी गुत्थियों को सुलझाता है । आचार्य भिक्षु धार्मिक संघ के नेता ही नहीं, राजस्थानी साहित्य के सफल स्रष्टा भी थे। अनेक रूपों में उनका व्यक्तित्व उभरा है। प्रस्तुत कृति में उनके दो रूप बहुत ही स्पष्ट और प्रभावशाली हैं: 1. विचार और चारित शुद्धि के प्रवर्तक 2. संघ व्यवस्थापक कुल मिलाकर प्राचार्य भिक्षु के विचार बिन्दुओं का एक समाकलन है । 4. आचार्य श्री तुलसी - जीवन दर्शन --मुनि नथमल : - आचार्य श्री तुलसी ने बहुत किया, बहुत संघर्ष झेले, चरित्र विकास के लिए बहुत यत्न किया, बहुत परिव्रजन किया, बहुत चिन्तन किया और बहुत कार्य किया । इन सारे बहुत्वों का विस्तार भी बहुत हो सकता है। प्रस्तुत पुस्तक में इस विस्तार को भी शाब्दिक अल्पत्व में कुशलता से संजोया गया है। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह जीवनी गुणात्मक न होकर समीक्षात्मक है । इसमें प्राचार्य श्री की व्यक्तिगत डायरी के अंश भी यत्र-तत्र उद्धृत हैं । 5. आचार्य श्री तुलसी जीवन पर एक दृष्टि-मुनि नथमल:- प्रस्तुत कृति प्राचार्य श्री तुलसी के 37 वर्षीय जीवन पर प्रकाश डालने वाली प्रथम कृति है । इसमें आचार्य श्री के बहुमुखी व्यक्तित्व, कृतित्व, विचार और जीवन प्रसंगों का हृदयग्राही विवेचन है । 6. आचार्यश्री तुलसी जीवन और दर्शन – मुनि बुद्धमल:- प्रस्तुत कृति प्राचार्य श्री तुलसी के जन्म से लेकर धवल समारोह तक उनकी बहुमुखी प्रवृत्तियां तथा उनके कर्तृत्व और व्यक्तित्व पर पूर्ण प्रकाश डालती है ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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