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________________ 348 श्रमण संस्कृति का प्रागैतिहासिक अस्तित्व, श्रमण संस्कृति के मतवाद, आत्मविद्या, तत्वविद्या, जैन धर्म का प्रचार-प्रसार, साधना पद्धति, योग आदि अतीव महत्वपूर्ण और गम्भीर विषयों पर प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध की गई है। द्वितीय खंड में उत्तराध्ययन सत्र से संबंधित विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है। उसमें व्याकरण विमर्श, छन्दो विमर्श, चूर्णिकृत परिभाषायें, कथानक संक्रमण, भौगोलिक व व्यक्ति परिचय, तत्कालीन संस्कृति और सभ्यता आदि की चर्चा है। 7. दशवकालिक-एक समीक्षात्मक अध्ययन :-प्रस्तुत ग्रन्थ में दशवकालिक सूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। यह पांच अध्यायों में विभक्त है --प्रथम अध्याय में दशवकालिक का महत्व, उपयोगिता, रचनाकाल, रचनाकार का जीवन परिचय, रचना शैली, न्याकरण विमर्श, छन्द विमर्श तथा भाषा दृष्टि से चिन्तन किया गया है। द्वितीय अध्याय में साधना तथा साधना के अंग पर विचार हुआ है। तृतीय अध्याय में महाब्रत और चतुर्थ अध्याय में चर्या और बिहार, ईर्योपथ, वाकशद्धि, एषणा, इन्द्रिय और मनोनिग्रह आदि विषयों को विस्तार से विवेचित किया गया है। पांचवें अध्याय में आहार चर्या, निक्षेप पद्धति.निरुक्त, तत्कालीन सभ्यता और संस्कृति पर प्रकाश डाला गया है। 8. दशवकालिक उत्तराध्ययन (अनुवाद):- ये दोनों आगम जैन आचार-गोचर और दार्शनिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते है। दशवकालिक में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आदि धर्म तत्वों का, साधनों की भिक्षाचर्याविधि, भाषा विवेक, विनय तथा व्यावहारिक शिक्षाओं का विस्तत और सूक्ष्म विवेचन है। उत्तराध्ययन में वैराग्यपूर्ण कथा प्रसंगों द्वारा धार्मिक जीवन का अति प्रभावशाली चित्रांकन तथा तात्विक विचारों का ह्यदयग्राही संग्रह है । पागम और त्रिपिटक एक अनुशीलन--मुनि नगराज :- श्रमण परम्परा की दो मुख्य धारायें हैं --जैन और बौद्ध । जैन परम्परा का नेतृत्व भगवान महावीर ने किया और बौद्ध परम्परा का नेतृत्व महात्मा बुद्ध ने। दोनों सम-सामयिक थे। दोनों का कर्मक्षेत्र लंगभग एक ही रहा। दोनों अहिंसा,संयम और करुणा को लेकर बढे । अतःदोनों में अभिन्नता के अंश अधिक थे, भिन्नता के कम। प्रस्तुत ग्रन्थ में दोनों श्रामणिक परम्पराओं के कतिपय विषयों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है । इसके एक अध्याय में महावीर और बद्ध में ज्येष्ठ कौन? इस प्रश्न को विभिन्न प्रमाणों से समाहित किया है। महावीर और बद्ध के समकालीन राजा श्रेणिक, बिम्बिसार, कणिक, चण्डप्रद्योत, प्रसेनजित, चेटक आदि पर प्रागमों तथा त्रिपिटकों के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। भगवान महावीर और जैन धर्म विषय के जितने भी समल्लेख त्रिपिटक साहित्य में है वे सब प्रस्तुत ग्रन्थ के एक अध्याय में संकलित कर दिए गए है। शोधनकर्ताओं के लिये इनका बहुत महत्व है। __10. महावीर और बुद्ध की समसामयिकता-मुनि नगराज:-प्रस्तुत पुस्तक में महावीर और बुद्ध की काल गणना पर ऐतिहासिक दृष्टि से विचार किया गया है। इतिहास के विद्वानों ने प्रस्तुत पुस्तक को मान्यता दी है। जीवनी साहित्य :-- 1. भगवान महावीर-आचार्य तुलसी:- प्रस्तुत पुस्तक में भगवान महावीर को सरल सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया गया है। बड़े बूढे, स्त्री, पुरुष, सभी के लिये सुपाच्य है। इसमें न सैद्धान्तिक जटिलतायें हैं और न दार्शनिक गुत्थियां ही। सब कुछ सरल भाषा में
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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