SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 37 साहित्य का निर्माण होता रहा है। कुछ प्रमुख गद्य लेखकों का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है-- 1. पं. उदय जन -- श्री जवाहर विद्यापीठ, कानोड़ के संस्थापक, संचालक, पं. उदय जैन प्रारम्भ से ही प्रोजस्वी वक्ता और मौलिक चिन्तक रहे हैं। आपकी यह प्रखरता और मौलिक चिन्तना आपके लेखन में भी प्रतिफलित हुई है। स्वतन्त्र विचारक होने के नाते आप निर्भीक होकर स्पष्ट बेलाग भाषा में अपनी बात कहते हैं। भगवान महावीर के जीवन और सिद्धान्तों से सम्बन्धित 'वीर विभूति' नामक आपका एक ग्रन्थ प्रकाशि का है जिसके वर्धमान महावीर, तीर्थंकर महावीर और सर्वज्ञ महावीर तीन खण्ड हैं। य परी पुस्तक है 'साम्प्रदायिकता से ऊपर उठो'। इसमें 30-35 वर्षों के मध्य समय-समय पर लिखे गए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित जैन धर्म, धार्मिक शिक्षा, जैन सिद्धान्त, समाज संगठन, संघ सेवा प्रादि से संबद्ध विचारोत्तेजक, प्रेरणादायी लेख संकलित हैं। नवयुवकों को प्रेरणा देते हए आप कहते हैं-- "वीर नवयुवकों ! अपना समाज धनलोलुप बना हुआ है। वीर के तप और त्याग को भल गया है। गौतम जैसे शिष्य ने निर्वाणोत्सव मनाया था। आज हमें उसी तरह सज्ञान का प्रदीप जला कर मनाना है। संसार को शांति, अहिंसा का पाठ पढ़ा कर मनाना है। संसार में प्रज्वलित हिंसा की आग अब शांत करना है। यह कार्यवीर के अनुयायी ज्ञान और क्रिया की दो पांखों वाले जैन युवक ही कर सकते हैं। अतः हे नवयुवाओं आप उठो, निर्भय होकर अपने पुरुषार्थ को बताओ और अपनी सारी प्रवृत्तियां समाजोत्थान के कार्य में समर्पण कर दो।" (24-4-45 के 'जैन प्रकाश' में प्रकाशित लेख से उद्धृत) 2. डा. मोहनलाल मेहता कानोड़ (उदयपुर) के ही डॉ, मेहता जो वर्तमान में पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी के अध्यक्ष और बनारस हिन्द युनिवर्सिटी में जैन दर्शन के सम्मान्य प्राध्यापक हैं. सफल लेखक और विचारक विद्वान हैं । आपका संस्कृत और प्राकृत के साथ हिन्दी, अंग्रेजी और गुजराती भाषामों पर अच्छा अधिकार है। जैन दर्शन और जैन संस्कृति पर आपने हिन्दी और अंग्रेजी में कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें मुख्य हैं--जैन धर्म दर्शन, जैन आचार, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, प्राकृत और उसका साहित्य, गणितानुयोग। जैन दर्शन, जैन मनोविज्ञान, जैन संस्कृति और जैन कर्म सिद्धान्त पर लिखी हुई आपकी अंग्रेजी पुस्तकें बुद्धजीवियों के लिए विशेष उपयोगी रही है। आपकी लेखन शैली स्पष्ट और सटीक है। सहज, सरल भाषा में आप सीधे ढंग से प्रमाण पुरस्सर बात कह जाते हैं। एक उदाहरण देखिए "मरण दो प्रकार का होता है--बाल मरण और पंडित मरण । अज्ञानियों का मरण बाल मरण एवं ज्ञानियों का पंडित मरण कहा जाता है। जो विषयों में आसक्त होते हैं एवं मत्य से भयभीत रहते हैं वे अज्ञानी बाल मरण से मरते हैं। जो विषयों में अनासक्त होते हैं यथा मृत्यु से निर्भय रहते हैं, वे ज्ञानी पंडित मरण से मरते हैं। चुकि पंडित मरण में संयमी का चित्त समाधियुक्त होता है अर्थात् संयमी के चित्त में स्थिरता एवं समभाव की विद्यमानता होती है, अतः पंडित मरण को समाधि मरण भी कहते हैं ।" (जैन धर्म दर्शन से उवृत्त, पृ. 11)
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy