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धारण, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, हरिजनोद्धार, नारी जागरण, व्यसनमुक्ति , संतति नियमन, दहेज़ निवारण जैसे सभी रचनात्मक कार्यक्रमों के आप समर्थक थे। अापके उपदेशों से प्रभावित होकर तत्कालीन कई श्रीमंतों ने खादी धारण का व्रत लिया और राष्ट्रीय आन्दोलन में सहयोगी बने।
अापके प्रवचनों की यह विशेषता थी कि वे युग की धड़कन को संभाले हुए शाश्वत सत्यों के व्यंजक, और उदात्त जीवनादर्शो के उद्घाटक होते थे। उनमें विचार शक्ति और व्याख्या शक्ति की प्रदर्भ त क्षमता थी। उत्तराध्ययन सूत्र के 29वें अध्ययन सम्यकत्व पराक्रम गहस्थ धर्म, भक्तामर स्तोत्र आदि पर दिये गये आपके प्रवचनों में एक प्रबुद्ध विचारक और शास्त्रदोहक व्याख्याता के दर्शन होते हैं। प्रवचनों के बीच-बीच पौराणिक, ऐतिहासिक और लोक जीवन से सम्बद्ध छोटे-छोटे कथानक, दृष्टान्त और रूपक न केवल सरसता का संचार करते हैं वरन् श्रोता समुदाय के हृदय पर गहरा प्रभाव भी डालते हैं। आपकी आवेगमयी भाषा और चेतावनी परक उद्बोधन का एक नमूना देखिये
"मित्रो ! आप लोगों के पास जो द्रव्य है उसे अगर परोपकार में, सार्वजनिक हित में और दीन-दुखियों को सहायता पहुंचाने में न लगाया तो याद रखना, इसका ब्याज चकाना भी तम्हें कठिन हो जायेगा। ऐसे द्रव्य के स्वामी बनकर आप फूले न समाते होंगे कि चलो हमारा द्रव्य बढ़ा है, मगर शास्त्र कहता है और अनुभव उसका समर्थन करता है कि द्रव्य के साथ क्लेश बढ़ा है। जब आप बैंक से ऋण रूप में रुपया लेते हैं तो उसे च काने की कितनी चिन्ता रहती है। उतनी ही चिन्ता पुण्य रूपी बैंक से प्राप्त द्रव्य को चुकाने की क्यों नहीं करते? समझ रखो, यह संपत्ति तम्हारी नहीं है। इसे परोपकार के प्रथअपंण करदा। याद रखो. यह जोखिम दूसरे की मेरे पास धरोहर है। अगर इसे अपने पास रख छोडूगा तो यह यहीं रह जायेगी, लेकिन इसका बदला चुकाना मेरे लिये भारी पड़ जायेगा"।
(दिनांक 30-9-31 को दिया गया व्याख्यान, दिव्य जीवन से उद्धृत) अापका विशाल गद्य साहित्य 'जवाहर किरणावली' के 35 भागों में प्रकाशित हना है जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं:-दिव्य दान, दिव्य जीवन, दिव्य संदेश, जीवन धर्म, सबाह कुमार, रुक्मणी विवाह, जवाहर स्मारक प्रथम पुष्प, सम्यक्त्व पराक्रम भाग 1 से 5, धर्म और धर्मनायक, रामवनगमन भाग 1 व 2, अंजना, पाण्डव चरित्र भाग 1 व 2, बीकानेर के व्याख्यान, शालिभद्र चरित्न, मोरबी के व्याख्यान, संवत्सरी, जामनगर के व्याख्यान. प्रार्थना प्रबोध, उदाहरण माला भाग1 से 3, नारी जीवन, अनाथ भगवान भाग 1 व 2, गहस्थ धर्म भाग 1 से 3, सती राजमती और सती मदनरेखा। इसके अतिरिक्त तीन भागों में राजकोट के व्याख्यान, छह भागों में भगवती सूत्र पर व्याख्या और कथा साहित्य में हरिश्चन्द्र तारा, सदर्शन चरित्र, सेठ धन्ना चरित, शकडाल पूत्र व तीर्थकर चरित दो भागों में प्रकाशित हए हैं।
2. जैन दिवाकर श्री चौथमल जी म.--
आप प्रभावशाली वक्ता होने के साथ-साथ सफल कवि भी थे। आपका शास्त्रीय ज्ञान गहरा था, पर व्याख्यान शैली इतनी सहज, सरल और सुबोध थी कि थोता आत्मविभोर हो जाते थे। सीधी सादी भाषा में साधारण सी छोटी लगने वाली बात आप इस ढंग से कह जाते थे कि उसका प्रभाव देर तक गंजता रहता था। अापके व्याख्यानों का मूल स्वर जीवन को शुद्ध, वातावरण को पवित्र और समाज को व्यसन-विकार मुक्त बनाना था। आपका राजस्थान के राजा-महाराजाओं, ज़मींदारों, जागीरदारों और रईसों पर बड़ा प्रभाव था । आपके उपदेशों से प्रभावित होकर कईयों ने मांसाहार, मदिरापान, आखेट और जीवहिंसा का त्याग किया था ।