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________________ हिन्दी जैन गद्य साहित्य-6 डॉ. शान्ता भानावत राजस्थान में स्थानकवासी परम्परा की बड़ी समृद्ध परम्परा रही है। उसके उन्नयनसंगठन और अभिवर्धन के लिए यहां अनवरत प्रयत्न होते रहे हैं। प्रात्मोद्धार, लोक-शिक्षण और जन-कल्याणकारी प्रवृत्तियों में यह परम्परा और इसके अनुयायी सदैव उत्साही और अग्रणी रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीयता और समाज सुधारात्मक आन्दोलनों के साथ-साथ इस परम्परा में संस्कृत और हिन्दी के अध्ययन की प्रवृत्ति पर विशेष बल दिया जाने लगा। फलस्वरूप समाज में नई चेतना और नव समाज निर्माण का वातावरण मुखरित हुआ। स्थानकवासी परम्परा धार्मिक क्षेत्र में क्रांतिवाही परम्परा रही है। समय समय पर करूढियों, बाह्य पूजा-विधानों और ग्राडम्बरपूर्ण क्रियाकाण्डों की धूल को झाडकर धर्म के दर्पण को यह साफ-सुथरा करती रही है, उसकी आन्तरिक तेजस्विता को चमकाती-दमकाती रही है। प्रात्मपरकता के साथ धर्म की समाजपरकता को यहां बराबर महत्त्व दिया जाता रहा है। यही कारण है कि इस परम्परा के साधु, साध्वी और श्रावक-श्राविका निरन्तर समाज सेवा में सक्रिय साहित्य के क्षेत्र में पद्य की तरह गद्य में भी इस परम्परा की महत्त्वपूर्ण देन रही है। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के बढ़ने के साथ-साथ जैन सन्त-सतियों ने अपने व्याख्यान खड़ी बोली हिन्दी में देने प्रारम्भ किये। प्रारम्भिक अवस्था में यह हिन्दी राजस्थानी बोलियों के स्थानीय प्रभाव से युक्त थी। पर धीरे-धीरे यह प्रभाव कम होता गया और परिष्कृत हिन्दी का शिष्ट सामान्य रूप प्रतिष्ठित हुआ। गद्य को लगभग सभी विधाओं में यथेष्ट साहित्य रचना की गई है। इस क्षेत्र में संतसतियों के साथ-साथ गहस्थ लेखक भी बराबर सक्रिय रहे हैं। इस दृष्टि से इन गद्य लेखकों को तीन वर्गों में रखा जा सकता है--(क) संतवर्ग (ख) साध्वी वर्ग और (ग) गृहस्थ वर्ग। [क] संतवर्ग : यहां प्रमुख गद्य संत साहित्यकारों का परिचय देने का प्रयत्न किया जा रहा है। 1. प्राचार्य श्री जवाहरलालजी म. -- अाप यग प्रवर्तक महान क्रान्तिकारी प्राचार्य थे। अापने परम्परागत प्रवचन शैली और अध्ययन क्रम को नया मोड दिया। उसमें समसामयिकता और राष्ट्रीय भावधारा का रंग भरा। संकीर्ण अर्थों में केद प्राचीन धर्म-ग्रन्थों को नया अर्थ-बोध देकर उनकी रूढ़ि-उच्छेदमूलक समाजोद्धार और राष्ट्रोद्धार की प्रवृत्तियों को उजागर किया। अापकी वाणी वागविलास न होकर अन्तःस्तल से निकली सच्ची युगवाणी थी। तत्कालीन राष्ट्रनायकों से प्रापका संपर्क था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, सरदार पटेल आदि के साथ आपका विचार-विमर्श और संपर्क-सूत्र बना रहा। स्वाधीनता आन्दोलन के अहिंसात्मक प्रतिरोध, सत्याग्रह, खादी
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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