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________________ 323 21. पं. गिरधर शर्मा (झालरापाटन) इन्होंने कुछ स्तोत्रों के अनुवाद एवं कुछ स्वतन्त्र रचनायें भी लिखी हैं। जैन समाज में सर्वाधिक प्रचलित भक्तामर काव्य का इन्होंने सरल सुबोध पद्यों में बड़ा सुन्दर अनुवाद किया। हिन्दी भाषी जैन इनके पद्यान वाद को बड़े चाव से पढ़ते हैं। आपके पद भावपरक हैं । 22. डा. सौभागमल दोसी (अजमेर) गत 45 वर्षों से दोसी जी साहित्यिक क्षेत्र में बराबर कार्य कर रहे हैं। जैन समाज की प्रत्येक गतिविधियों में आपका योगदान रहता है। संगीत मण्डली के साथ आप विशेष धार्मिक उत्सवों में भाग लेकर अपनी कविताओं व भजनों को सुनाते रहते हैं। इस प्रसार संसार में छोटे से जीवन पर क्या इतराना इसी को लक्ष्य कर कवि कहता है:-- नव विकसित कलियों से संचित करके अभय मधुकर मकरंद, फल फल को गूंज रहे हो, लघु से जीवन पर मति मन्द । पतझड के दिन भूल, फूल तो फूल रहा है अज्ञान, तुम किस मद में गूंज रहे हो, भूला पात्म का समकित ज्ञान । 23. युगलकिशोर (कोटा) आध्यात्मिक प्रवक्ता, लेखक व कवि युगल जी के नाम से प्रख्यात हैं। आपने अनेक पद्य व कवितायें लिखी हैं। सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक देवशास्त्र गुरु पूजा है। पूजा समूचे भारत में बडी भक्ति से पढ़ी जाती है। प्रत्येक मन्दिर में प्रतिदिन पूजा करने वाला भक्त पूजारी अपनी पूजा में युगल जी के साथ-साथ अपने मनोगत भावों को व्यक्त करता है इन्द्रिय के भोग मधुर विष सम, लावण्यमयी कंचन काया, यह सब कुछ जड़ की क्रीड़ा है म अबतक जान नहीं पाया। मैं भूल स्वयं के वैभव को पर ममता में अटकाया हं, अब सम्यक निर्मल नीर लिए, मिथ्या मन धोने पाया हं। कवि प्राध्यात्म रस से प्रोत-प्रोत कविता करने में दक्ष है तथा अपने काव्य पाठों से जनजन के ह दय में सहज ही समा जाते हैं। 24. अनूपचन्द जैन (कोटा) आपके कतित्व की समचित जानकारी जिन लोगों को है वे जानते हैं कि श्री जैन अत्यन्त भावक तथा कल्पनाशील व्यक्ति है। कविता करने में आपको प्रारम्भ से ही रुचि है। तथा आपकी कवितायें लोकप्रिय रही है। वीरवाणी' शीर्षक कविता का एक अंश देखिये-- मखरित हई किसकी गिरा वह शून्य के संकेत पट पर. कौन जीवन में जगा यह विवशता के मत्यु घर पर। किन्तु जिसने भी सुनी समझी भ्रमर यह वीरवाणी हो गया गंधा वही उन्मुक्त वसुधा के डगर पर। उक्त कवियों के अतिरिक्त और भी कवि हैं जो समय-समय पर कविताएं लिखते रहत हैं। श्रीमती सुशीला कासलीवाल गद्य गीत लिखती हैं। श्री नाथूलाल जैन लेखक एवं कवि के रूप में राजस्थान में सुपरिचित व्यक्ति हैं। शरद जैन कोटा के उदीयमान कवि हैं ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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