SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कई पूजायें व कविताएं आपने लिखी हैं । की है:-- 18. 322 'हूं स्वभाव से समय-सार, परणति हो जावे समयसार, है यही चाह, है यही राह, जीवन हो जावे समय-सार । राजमल जैन बेगस्या जन्म 17 मार्च, 1937 जयपुर में 1 शिक्षा एम. ए. इतिहास व समाज शास्त्र । युवा कवि हिन्दी व राजस्थानी में पर्याप्त कविताएं लिखता है। अच्छे गायक हैं । व्यायात्मक तथा उपदेशात्मक पद्य बहुत लिखते हैं। इनकी कविता का एक उदाहरण निम्न है: कवि ने एक कविता में अपनी चाह निम्न प्रकार व्यक्त सुख ढूंढ रहा बाहर मानव, वह अन्तर में बसता; स्व में लीन संतोषी है, सुख का झरना वहीं बहता । बाल्यकाल, यौवन आये और अन्त बुढापा है प्राता, पर तृष्णा रहे सदैव षोडशी इसका नहीं यौवन जाता । कवि राजस्थानी भाषा में भी काव्य रचना करते रहते हैं । प्राप जब गाकर अपनी कविताों को सुनाते हैं तो उपस्थित जन समुदाय को भाव विभोर कर देते हैं । 19. मुंशी हीरालाल छाबडा जन्म संवत् 1920। उर्दू व फारसी के अच्छे विद्वान् थे । की सरल पद्यों में रचना की है जो वीर नि. सं. 2446 में छपी थी । माधुर्य युक्त है । ढूंढारी शब्दों का भी इसमें प्रयोग है। दश धर्म के क्षमा आदि है धर्म जीव के, योगी इनमें रमते हैं, ये ही हैं शिव मारग जग में, भव्य इन्हीं से तिरते हैं । पूजा में कवि ने अपनी अन्तिम भावना निम्न प्रकार व्यक्त की है:-- 20. पं. गुलाबचन्द जैन दर्शनाचार्य सुख पावें सब जीव, रोग शोक सब दूर हो | मंगल होय सदीव, यह मेरी है भावना | यह श्राप आपने चौबीस तीर्थंकर पूजा पूजन की भाषा सरल और सम्बन्ध में कवि कहता है 9 नवम्बर 1921 का जन्म | शिक्षा आचार्य जैन दर्शन तथा एम. ए. हिन्दी व संस्कृत में। साहित्यरत्न व प्रभाकर । अच्छे विद्वान् हैं । हिन्दी में सुगन्ध दशमी आदि पूजाएं लिखी हैं । प्रिय प्रवास की शैली में इन्होंने अंजना काव्य लिखा है जिसका कुछ अंश वीरवाणी में प्रकाशित हो चुका है। इसी काव्य का एक अंश निम्न प्रकार है: -- अमित कोमल केश कलाप था, फणि सलज्जित का उपमान में । विधुसमान प्रफुल्लित कंजसा, सुमुख था जिसका प्रति शोभना । शुक समान समुन्नत नासिका, अधर रक्त पीयूष भर लसै । वर कपोल सुडोल ललाम थे, चिबुक की क्षमता कवि खोजते ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy