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________________ 321 सहयोगी हैं। आप एक पाश कवि भी हैं। आपकी कविताओं की भाषा सरल व माधर्य लिए हुए है। यद्यपि इनकी कविताओं का संग्रह रूप में तो अभी तक प्रकाशन नहीं हया किन्तु 300 से अधिक कविताएं आजतक जैन संदेश, अनेकान्त, वीरवाणी आदि पत्रों में छप चुकी है। भारत बाहुबलि संवाद, बाहुबलि वैराग्य, (खण्डकाव्य) इनकी सुन्दर कृतियां हैं। रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित गीतांजली के करीब 60 गद्यांशों का पापने पद्य में सुन्दर अनवाद किया है। इसके अतिरिक्त कांजीबारस, चन्दन एवं रोहिणी ब्रत की पूजा लिखी है जो प्रकाशित हो चकी है। गीतांजली के एक गद्यांश का एक अनुवादित पद्य इस प्रकार है: दूर कर यह धूप खेना, और फूलों को चढ़ाना, तोड व्यर्थ समाधियों को क्योंकि वह उनसे मिले ना। क्या बिगडता ! अगर तेरे वस्त्र मंले पौ फटे हैं, वह मिलेगा पूर्व श्रम के स्वेद कण में चमचमाता। वह नहीं यों नजर पाती। अकेले भगवान महावीर और इसके सिद्धान्तों पर कवि ने 60 से भी अधिक कविताओं में बड़ा सुन्दर भावार्थ डाला है। भगवान महावीर के संदेश का निचोड कवि के शब्दों में पढियेः ये सत्य अहिसा ब्रह्मचर्य जीवन को उच्च बनाते हैं , इच्छा निरोध ही उत्तम लय भावों में जाग्रति लाते है। बन राग द्वेश का भाव हटे कर्मों का बन्धन कटता है, भगवान् बनाये न बनता भगवान् स्वयं ही बनता है। कवि के साथ ही पं. अनुप चन्द अच्छे लेखक, अन्वेषक तथा पुरातत्व विशेषज्ञ है। अापने राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची सम्पादन का अच्छा कार्य किया है। 16. प्रसन्न कमार सेठी कवि का जन्म 14 जुलाई 1935 में जयपुर में हुआ। शिक्षा एम. काम. व विशारद । य युवा कवि, लगन शील सेवाभावी व्यक्ति हैं। इनका रहन-सहन सादा व शरीर पतला दुबला है। अध्यात्म में डबा हुया इनका व्यक्तित्व सहज में ही देखा जा सकता है। संसार की असारता का वर्णन करते हुए कवि कहता है:-- किसका घोडा, किसका हाथी, किसकी मोटर रैल है, वही निराकुल है जिसने समझा हो, जीवन खेल है। कवि की हर रचना प्राध्यात्मिकता से प्रोत-प्रोत है। कवि ने सैकडों कवितायें लिखी है। प्रेरणा नामक प्रथम व द्वितीय पुष्प, सोलह कारण भावना, व दश लक्षण नामक पद्य रचनायें प्रकाशित हो चुकी है। कवि अलौकिक प्रतिभा का धनी है तथा ये अपनी कविताओं का सस्वर पाठ करते हैं। 17. डा. हुकमचन्द भारिल्ल आप मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं। कई वर्षों से आप जयपुर में रह रहे हैं। आप आध्यात्मिक प्रवक्ता के रूप में जाने जाते हैं। पंडित टोडरमल व्यक्तित्व और कृतित्व पर आपको डाक्टरेट की उपाधि मिली। आप कवि भी हैं। वैराग्य महाकाव्य, पश्चाताप खण्ड काव्य,
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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