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है यह संसार अमारा, भवसागर ऊंडी धारा, इस भंबर में जो कोई रमता, वह लहे म क्षण भरममता।
12. 4. चौथमल शर्मा
__ जयपुर के रहने वाले थे। विक्रम की बीसवीं शती के उत्तरार्द्ध में इनका जन्म हुप्रा।दिगम्बर जैन पाठशाला जयपूर (वर्तमान कालेज) में अध्यापक होने से ये जैनों के सम्पर्क में काफी प्राये। विभिन्न राग-रागिनियों में आपने कई जैन कथानकों को गंथा। चारुदत्त, महीपाल, सुखानन्द, मनोरमा, ब्रजदन्त, नीली, धन्यकुमार, विष्णु कुमार, यमपाल चाण्डाल आदि कितने ही वर्णन इनके लिखे हैं। शांतिनाथ भगवान की स्तुति करता हुमा कवि लिखता है--
श्री शांतिनाथ त्रिभुवन आधार, गुण गुण अपार, सोहे निर्विकार, कल्याणकार जग अति उदार, म्हें उन्हीं को शिर नावों नावों नांवां ।
13. पं. इन्द्र लालजी शास्त्री
जयपुर में जन्म 21-9.1897 । स्वर्गवास सन् 1970 । शिक्षा साहित्य शास्त्री तक । शास्त्री जी संस्कृत व हिन्दी के अच्छे विद्वान थे साथ ही अच्छे वक्ता, लेखक व कवि । धर्म सोपान, प्रात्म वैभव, तत्वालोक, पशु वध सबसे बडा देशद्रोह' प्रादि स्वतन्त्र पद्यमय रचनाएं तथा भक्तामर स्तोत्र, एकीभाव स्तोत्र, कल्याण मन्दिर, विषापहार, भूपाल चतुर्विशति, प्रात्मानुशासन, स्वयंभू स्तोत्र, सामायिक पाठ आदि का हिन्दी अनुवाद किया। अनेक फुटकर कवितायें भी लिखी। कवि की कविता का एक उदाहरण इस प्रकार
जो पाशा के दास हैं वे सब जग के दास है, आशा जिनकी किकरी उनके पग जगवास । जो चाहो जिस देश का कल्याण मरु उत्थान, करो धर्म का अनुसरण, समझो धर्म प्रधान ।
14. जवाहिरलाल जैन
इनका जन्म जयपुर में दिसम्बर 1909 में हुमा। इनके पिताश्री जीवनलाल थे। शिक्षा एम. ए. इतिहास व राजनीति शास्त्र में, हिन्दी में विशारद। श्री जैन गय और पद्य के प्रच्छे लेखक हैं। गद्य की अनेक रचनायें छप की है। पद्य की देखने में नहीं पायीं। किन्तु फिर भी समय समय पर कई पत्रों में इनकी कवितायें प्रकाशित हुई है। संसार को छलिया बताते हुए कवि लिखता है:
कैसा है छलिया संसार, किसने पाया इसका पार, फूल फूल कर बल खाते हैं, हंसते हैं वे प्यारे फूल, मधुप गान करते आते हैं, जाते हैं मधु प्यालों में झूल वाय का झोंका पाता है, भ्रमर झटपट उड जाता है, फल सोता मिट्टी की गोद टूट जाता सपनों का तार।
15. श्री अनूपचन्द्र न्यायतीर्थ
इनका जन्म जयपुर में दिनांक 10-9-1922 को हुआ। ये पं. चैनसुखदास जी के प्रमुख शिष्यों में गिने जाते हैं। अनेक ग्रन्थों के सम्पादन में डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल के