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________________ 319 विशेष रुचि थी। आपकी सैकड़ों कवितायें जैन पत्रों के अतिरिक्त सुधा, माधुरी, अर्जुन, विश्ववाणी, कल्याण, विश्वामित्र, रलाकर जैसे अनेक हिन्दी के चोटी के पत्रों में प्रकाशित हई। पंडित जी की कविताओं का संग्रह 'दार्शनिक के गीत' नाम से प्रकाशित हो चुका है। कवि की भक्ति में भी दार्शनिकता है। एक कविता में उनसे सनातन सत्य में मिलाने की प्रार्थना निम्न शब्दों में की है: ज्ञान के आलोक में जहां वासनाएं भाग जाती, जो निरापद चिन्तनाएं जहां सदा विश्राम पाती। वह निरामय धाम भगवान् है कहां मुझको बतादो, उस सनातन सत्य में है नाथ तूं मुझको मिलादो। एक अन्य कविता में कवि ने दार्शनिकता के द्वार की ओर संकेत करते हुए लिखा है किदुःखमय क्षण भंगुर संसार, कौन साधन से होगा पार, प्रतिक्षण जीवन का यह लक्ष्य, दार्शनिकता का उत्तम द्वार । कवि एक अोर अध्यात्म और दर्शन की चर्चा करता है तो दूसरी ओर संसार की वस्तुस्थिति को सोशल नहीं करता। सारा संसार पैसे के पीछे क्यों दौड़ता है : इसका उत्तर कवि ने निम्न शब्दों में दिया है: नर से नर के पेट पुजाता, विपुल राशि में जब तूं आता। नाम धाम सब काम बदल जाते, तेरे आ जाने से, होती क्षमता श्रीगरो। कवि ने किसी एक विषय पर बहत्त काव्य ग्रन्थ लिखने के स्थान पर छोटी-छोटी कविताप्रो के माध्यम से बहुत उत्तम विचार प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। 10. बांदमल बैन 'शशि' जन्म बगवाडा ग्राम (जयपुर) में 13-6-1910 को, स्वर्गवास 7-2-74 का, शिक्षा साहित्यरत्न, एम.ए.हिन्दी व संस्कृत, बी.टी.। इनकी बचपन से ही कविता करने में रुचि थी. शशि जी का पूरा जीवन अध्यापन के रूप में बीता था। अापकी कवितायें जैन बन्ध,जैन दर्शन मादि अनेक पत्रों में प्रकाशित हुई हैं। इन कविताओं में प्रकृति वर्णन के साथ ही उदबोधक तत्व अच्छी संख्या में मिलते हैं। निर्धन की यातना बताते हुए कवि लिखता है:-- अहह ! निर्धनते ! तव पाश में, फंस न पा सकता नर शान्ति है। मलिन है, रहता मन सर्व का, विकलता बढती दिन रात है। 11, मास्टर नानूलाल भावसा जयपुर में जन्म, चेन कृष्णा 4 विक्रम संवत् 1950, स्वर्गवास पौष कृष्णा 11 सं. 2002 अध्ययन इंटर तक। गणित के विशेषज्ञ। बड़े सौम्य और शान्त प्रकृति के थे। खरताल हाथ में लेकर भजन गाते तो मात्मविभोर हो जाते। भक्तिपरक आध्यात्मिक कई पदापते लिखे हैं। आपके छोटे भ्राता भाई छोटेलाल जी पहले क्रांतिकारी थे जोलार्ड हाडिग पर बम फेंकने के सिलसिले में गिरफ्तार हए। पीछे गांधीजी के अनन्य भक्त बने और आजीवन गांधीजी के साथ रहे। मास्टर साहब के भजनों की एक पुस्तक 'नानू भजन संग्रह प्रकाशित होचका है। इस संग्रह में सभी भजत माध्यात्मिक और भक्तिपरक हैं।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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