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________________ $11 उनकी वाणी का वैभव उनकी पंखुड़ियां' में पांच चरित हैं, जो आपने अनेक लोकधुनों का प्रयोग ये कविताएं प्रबन्धात्मक होते घटना-प्रसार को सूक्त सांकेतिकता मुनिश्री चन्दनमलजी एक प्रभावशाली व्याख्याता हैं । वक्तृता में ही प्रगट होता है । उनके द्वारा रचित 'शतदल की व्याख्यान में उपयोग करने के उद्देश्य से छन्दोबद्ध किए गए हैं। करते हुए कविता में विभिन्न रागिनियों का समावेश किया है । हुए भी इनमें प्रबन्ध काव्य का वैविध्य और विस्तार नहीं है । के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । 'कुछ कलियां कुछ फूल' में मुनिश्री सागरमलजी 'श्रमण' की कविताएं संकलित की गई हैं । 'श्रमण' में सहज काव्य-प्रतिमा है और उन्होंने अपनी काव्यानुभूतियों को रसमय अभिव्यक्ति प्रदान की है, जो अनायास ही हृदय को स्पर्श करती है । आपके काव्य में जहां समर्पण के स्वरों का गुंजार है, वहां जीवन के संघर्षो की चुनौती का सहज स्वीकार भी है । यह संघर्ष किसी शक्ति के साथ नहीं, अपने ही मन के श्रावर्त -विवर्त के साथ है । कवि ने अपनी अन्तर्दृष्टि के द्वारा जीवन का एक समन्वित चित्र अंकित किया है: किन्तु, अभी तक जितना भी पढ़ सुन पाया हूं, मित्र, मिलन से घाव हृदय का खुलता भी है, मिलता भी है। तेज पवन से रंग मेघ का उड़ता भी है, घुलता भी है आड़ बड़े की लेकर छोटा पलता भी है, गलता भी है । मुनि रूपचन्द्रजी एक लब्धप्रतिष्ठ कवि हैं, जिनके प्रथम काव्य-संकलन 'अन्धा चांद' ने ही उन्हें एक नए कवि के रूप में मान्यता प्रदान कर दी थी। 'अन्धा चांद' और 'कला कला' की रचनाएं अपने भाव-बोध और भाव-संप्रेषण की उभय दृष्टियों से नई कविता की समीपवर्तिनी हैं। परन्तु, मुनिश्री कविता के किसी वर्ग विशेष से परिबद्ध नहीं रहे हैं। उन्होंने नई कविताओं के साथ ही रुबाइयां भी लिखी हैं, जो 'खुले आकाश" 'इन्द्र धनुष' और 'गुलदस्ता' में संकलित हैं । मुनिश्री रूपचन्द्रजी काव्य में सहज के उपासक हैं। उन्होंने स्वयं लिखा है- 'लय-गीत, तुकान्तअतुकान्त आदि को समान रूप मैंने सम्मान दिया है।' उनकी अनुभूतियों की सहजता उनकी अभिव्यक्ति में भी प्रतिबिम्बित हुई है: आस्था की इन गायों को जड़ता के खूंटे से मत बांधो तुम किन्तु भटकने दो इन्हें बीहड़ की इन टेढी-मेढी पगडंडियों में और चरने दो इन्हें खुले आकाश में सांझ होते-होते ये स्वयं घर का रास्ता ले लेंगी । आपकी रुबाइयों में रागात्मक संवेदन विशेष रूप से पाया जाता है । ऐसा प्रतीत होता है कि कवि ने लोक-जीवन के जिस कटु यथार्थ का साक्षात्कार किया है, उसने उसे काफी झकझोरा है । कहीं-कहीं कवि की अभिव्यक्ति काफी तीखी हो गई है: अब जरूरत नहीं सलीब पर लटकने की खुद क्रॉस बन कर रह गई यह जिन्दगी । मुनिश्री मोहनलालजी 'शार्दूल' के कई कविता-संग्रह प्रकाशित हुए हैं । 'पथ के गीत,' 'बहता निर्झर', 'मुक्त मुक्ता' और 'मुक्तधारा' में श्री 'शार्दूल' की रचनाएं संग्रहीत हैं । आपके •
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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