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________________ 312 मुक्तक अपने रागात्मक संवेदन और सहजभाव-सम्प्रेषण के कारण हृदय को स्पर्श करते हैं। उनके व्यष्टि जीवन के सत्य के साथ ही समष्टि जीवन का यथार्थ भी अभिव्यंजित हया है: आदमी प्रभाव से ही नहीं, भाव से भी आक्रान्त हो जाता है और कोरे दु:ख से ही नहीं, सुख से भी आक्लान्त हो जाता है। दुनियां का अजीब रहस्य बिल्कूल ही समझ नहीं पाता, आदमी तप से ही नहीं, उजालों से भी उद्भ्रान्त हो जाता है। 'अनायास' मनिश्री सखलालजी की कवितानों का संग्रह है। मनि रूपचन्द्रजी ने इस संग्रह की रचनाओं का परिचय देते हुए जो कुछ लिखा है, वह सत्य के बहुत निकट है। 'अनायास की कविताएं अनायास ही लिखी हुई हैं। अत्यन्त सहज और अत्यन्त सादगीपूर्ण सज्जा अपने में लिए हुए है। स्पष्ट भाव और स्पष्ट भाषा, कहीं कोई घुमाव और उतार-चढ़ाव नहीं। जैसा सामने आया, उसे अत्यन्त अकृत्रिम भाव से शब्दों का परिधान दे दिया।' इस वक्तव्य की सार्थकता प्रमाणित करने को यह एक उद्धरण पर्याप्त होगा: मील के पत्थर नहीं करते मंजिल की दूरी को कम । पर एक भ्रम बनाए रखता है अपना क्रम । मुनिश्री दुलहराजजी काव्य के मूक साधक हैं। उनकी कविताओं में अन्तवत्तियों की सूक्ष्म गतिविधियों का पालेखन हुआ है। भाषा पर भी उनका अबाध अधिकार है, परन्तु न जाने क्यों उन्होंने अपनी रचनाओं को अद्यावधि अप्रकाशित ही रखा है। 'कालजयी' और 'परतों का दर्द' मुनिश्री विनयकुमारजी 'आलोक' की दो कृतियां हैं, जिनमें कुछ कविताएं और कुछ क्षणिकाए संकलित की गई हैं। इन रचनाओं के सम्बन्ध में प्रख्यात अालोचक डा. विजेन्द्र स्नातक का मत उल्लेख्य है 'अनुभव और चितन से संग्रथित होकर जो विचार-कण मुनिश्री के मन में उभरा है, वही कविता बना है। मुनिश्री अन्तःस्फूर्त कवि हैं।' 'परतों का दर्द' में कवि अभिव्यक्ति की नई भंगिमा को ग्रहण करता प्रतीत होता है: जीवन बज-बज कर घिस जाने वाला रिकार्ड खरखराता स्वर ही इसकी नियति है । मुनिश्री मणिलालजी ने कुछ क्षणिकाएं लिखीं हैं जो अपनी सूक्त सांकेतिक अभिव्यक्ति के कारण काफी प्रभावशाली बन पड़ी हैं :-- महानता समुद्र के रूप में बंद का अस्तित्व हीनता बीज के बदले में वृत्त का अहम् ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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