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________________ 289 55. यतीन्द्रसूरि ये त्रिस्तुतिक प्रसिद्ध आचार्य श्री विजय-राजेन्द्रसूरि के शिष्य थे। इनका जन्म सं. 1940 और दीक्षा सं. 1954, प्राचार्य पद सं. 1995 आहोर में हुआ था। विजय राजेन्द्रसूरि के कोष को अन्तिम रूप देने और प्रकाशित करने में इनका बड़ा योग रहा है। राजस्थान, गुजरात, मालवा आदि में विहार करते हुए आपने उन स्थानों और विहार के सम्बन्ध में कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें 'यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन भाग 1-4, “मेरी गोडवाल यात्रा", 'मेरी मेवाड यात्र और 'कोरटाजी का इतिहास' उल्लेखनीय हैं। आपने राजेन्द्रसूरि और मोहनविजय जी के जीवन चरित्र और पौराणिक अघटकुमार, कयवन्ना, चम्पक माला, रत्नसार, जगडुशाह, हरिबल आदि के जीवन चरित्र लिखे हैं। आपके व्याख्यानों के भी कई संग्रह निकले हैं और प्रकरणों आदि के अनुवाद भी आपने किये हैं। आपके सम्बन्ध में “यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ" द्रष्टव्य है । आपने भगवान् आपके सुशिष्य व पट्टधर विद्याचन्द्रसूरि अच्छे कवि व लेखक हैं। नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर पर हिन्दी में महाकाव्य लिखे हैं। 56. जीतमुनि ये तपागच्छीय थे और स्वयं को आनन्दघन जी का चरणोपासक मानते थे। योग में आपकी बड़ी रुचि थी। आपने कई प्राचीन ग्रन्थों का अनुवाद व संग्रह किया तथा कई स्वतंत्र रचनायें भी बनाई। प्रकाशित साहित्य इस प्रकार है: योगसार हिन्दी अनवाद सह, लघ प्रकरण माला हिन्दी अनवाद सह, अध्यात्म विचार जीत संग्रह, स्तवनादि संग्रह, भौले मूल अर्थ सहित, अनुभव पच्चीसी आदि। आपकी रचनाओं का काल 1970 से 1994 के आसपास का है। 57. मुनि जयन्तविजय ये तपागच्छीय श्री विजयधर्मसूरि के शिष्य थे। इनका जन्म सं. 1940, दीक्षा सं. 1971 है। इन्होंने आब और उसके निकटवर्ती जैन तीर्थों के प्रतिमा लेख संग्रह का काम कई वर्षों तक बडे परिश्रम से किया। वैसे 'अर्बुद प्राचीन जैन लेख संदोह', 'अर्बुदाचल प्रदक्षिणा' ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्वपूर्ण हैं। गुजराती में तो 'शंखेश्वर महातीर्थ, ब्राह्मणवाडा' आदि अनेकों ग्रन्थ भी लिखे हैं। हिन्दी में तो केवल एक ग्रन्थ “पाबू" सचित्र प्रथम भाग प्रकाशित है। इसमें प्राब के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों का ऐतिहासिक परिचय व वैशिष्टय का चित्रों के साथ प्रालेखन किया है। 58. मुनि मगनसागर ये उणियारा (टोंक) निवासी थे । इन्होंने खरतरगच्छ में मुनि दीक्षा ग्रहण की थी। इनके समय में खण्डन-मण्डन का प्राबल्य था, अत: कई पुस्तकें 'मुनि मगनसागर के प्रश्न और शास्त्रार्थ आदि आपने लिखीं। इनके अतिरिक्त 'मौन पुराण भूमिका और सिद्धान्त सागर प्राथमिक शिक्षा तथा हमीररासो सार' ग्रन्थ प्रकाशित हैं । 59. पंन्यास कल्याणविजय गणि इनका जन्म वि. सं. 1944 में लास नाम (सिरोही) में ब्राह्मणकिशन के राम-कदीबाई घर में हुआ था। इनका जन्म नाम तोलाराम था। वि. सं. 1964 में जालो रतपागच्छीय .
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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