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________________ 288 52. जिनहरिसागरसूरि - आप खरतरगच्छीय श्री भगवानसागर जी के शिष्य थे। अापका जन्म सं. 1949 रोहिणा ग्राम, दीक्षा 1967, प्राचार्य पद सं. 1992 और स्वर्गवास सं. 2006 मेड़ता रोड़ में हुआ था। आप बहुत सरल प्रकृति के थे और अच्छे कवि थे। इनकी स्तवनादि की रचनायें "हरिविलास' 'जिन स्तुति चौवीसी' में प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके अतिरिक्त 'दादा गुरुदेवों की 4 पूजायें' और “महातपस्वी चरित्र' भी प्रकाशित हो चुके हैं। सुदूर कलकत्ते तक विचरते हुए इन्होंने अच्छा धर्म प्रचार किया था। जैसलमेर ज्ञान भण्डार के जीर्णोद्धार और सुव्यवस्था में भी आपका योग रहा है। बहुत सी हस्तलिखित प्रतियों की भी आपने नकलें करवाई और स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्रादि खरीद कर अपने ज्ञान भण्डार लोहावट में स्थापित करवायी। मड़ता रोड़ (फलोदी) में आपके नाम से एक विद्यालय भी चाल हुआ था। अनेकों स्थानों में विचरते हुए आपने सैकड़ों प्रतिमाओं के लेखों का संग्रह भी किया था जो अभी तक अप्रकाशित है। अापके सुयोग्य शिष्य कविवर कवीन्द्रसागर जी का आपकी साहित्य सेवा और धर्म प्रचार कार्य में बड़ा सहयोग रहा। 53. वीरपुत्र आनन्दसागरसूरि ये खरतरगच्छीय श्री त्रैलोक्यसागर जी के शिष्य थे। इनका जन्म 1946, दीक्षा सं. 1968, प्राचार्य पद 2006 प्रतापगढ़ (राजस्थान) और स्वर्गवास 2016 में हुआ था। इनका ज्ञान भण्डार सैलाना में सुरक्षित है। इनकी निम्नोक्त रचनायें प्रकाशित हो चुकी :-- विपाक सूत्र अनुवाद कल्पसूत्र अनुवाद, श्रीपाल चरित्र अनुवाद द्वादश पर्व व्याख्यान अनुवाद सुख चरित्र त्रैलोक्य चरित्र महावीर जीवन प्रभा सप्तव्यसन परिहार प्रानन्द विनोद आगमसार स्वरोदय सार गहूंली सरिता अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य आदि कई छोटी-छोटी पुस्तिकायें। ये बहुत अच्छे वक्ता भी थे। 54. जिन कवीन्द्रसागरसूरि ये खरतरगच्छीय श्री जिनहरिसागरसूरि जी के शिष्य थे। इनका जन्म सं. 1964, दीक्षा सं. 1976 जयपुर, प्राचार्य पद सं. 2017 और स्वर्गवास सं. 2018 में हुआ। आप प्रतिभाशाली विद्वान एवं आशुकवि थे। आपका असामयिक स्वर्गवास हो गया अन्यथा साहित्य जगत को आपसे बहुत कुछ आशायें थीं। आपकी निम्नोक्त रचनायें प्राप्त हैं:-- कवीन्द्र केलि जिन स्तवन संदोह नवपद आराधन विधि आवश्यक विधि संग्रह रत्नत्रय पाराधन पूजा, सं. 2012 बीकानेर, पार्श्वनाथ पूजा,सं. 2013, महावीर स्वामी पूजा, सं. 2012 बीकानेर, प्रोत्साहन पच्चीसी चैत्री पूर्णिमा देववन्दन विधि तपोविधि संग्रह उपधान तप देववन्दन चौसठ प्रकारी पूजा, सं. 2013 मेडता रोड।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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