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________________ 290 मुनि श्री केसर विजय जी के पास इन्होंने दक्षा ग्रहण की थी । दीक्षा के समय इनका नाम कल्याणविजय रखा गया था । इन्हें सं. 1944 में पंन्यास पद प्राप्त हुआ था और सं. 2032 में जालोर इनका स्वर्गवास हुआ । कल्याणविजय जी जैन साहित्य, इतिहास, विधिशास्त्र ( प्रतिष्ठा ) आदि के प्रकाण्ड पण्डित थे । इनकी लिखित निम्न पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं:-- वीर निर्वाण संवत् और जैन काल गणना कल्याण कलिका प्रबन्ध पराग तित्थोगा लियपइण्णा (श्री गजसिंह राठोड़ के साथ सम्पादन एवं अनुवाद) आदि । श्रमण भगवान् महावीर पट्टावली प्रबन्ध 60. पुरातत्वाचार्य मुनि जिनविजय पद्मश्री मुनि जिनविजय रूपाहेली (मेवाड़) निवासी परमारवंशी वृद्धिसिंह के पुत्र थे । इनकी माता का नाम राजकुमारी था। इनका जन्म सन् 1888 में हुआ था । इनका जन्म नाम किशनसिंह था । बाल्यावस्था में ही ये यति देवीसिंह के शिष्य बने । यतिजी के देहावसान के पश्चात् स्थानकवासी सम्प्रदाय में दीक्षित हुए । 6 वर्ष पश्चात् इस सम्प्रदाय को त्याग कर मूर्तिपूजक समुदाय में तपागच्छ में दीक्षा ग्रहण की, जहां इनका नाम मुनि जिनविजय रखा गया । रूढिवादी परम्परा के प्रति आक्रोश एवं वैचारिक क्रांति के कारण इन्होंने इस वेष को भी त्याग दिया । कुछ वर्षों तक महात्मा गांधी के निर्देश पर इन्होंने गुजरात विद्यापीठ के प्राचार्य पदका भार वहन किया । संशोधन-सम्पादन शैली का वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए जर्मनी आदि यूरोपीय देशों में इन्होंने भ्रमण किया । भारत स्वतन्त्रता आन्दोलन में ये जेल भी गये । शान्ति निकेतन में रहते हुए इन्होंने श्री बहादुरसिंह जी सिंघी को प्रेरित कर 'संधी जै ग्रन्थमाला' की स्थापना की, जो आज भी भारतीय विद्या भवन, बम्बई के अन्तर्गत प्रकाशन कार्य कर रही है। मुनि जी भारतीय विद्या भवन, बम्बई तथा राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के संस्थापक और वर्षों तक निदेशक भी रहे । सिंघी जैन ग्रन्थमाला और राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला के प्रधान संपादक पद पर रहते हुए इनके कार्यकाल में क्रमशः विविध विषयात्मक प्राचीन एवं दुर्लभ 55 तथा 83 ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है । मुनिजी भारतीय संविधान के संस्कृत भाषा के अनुबादकर्ताओं में भी थे । भाण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना तथा जर्मन ओरियन्टल सोसायटी के सम्मान्य: सदस्य भी रहे। भारत सरकार ने पद्मश्री अलंकरण प्रदान कर और राजस्थान साहित्यअकादमी, उदयपुर ने मनीषी उपाधि प्रदान कर मुनिजी को सम्मानित किया था । मुनिजी हरिभद्रसूरि स्मारक चित्तौड़, भामाशाह बाल विद्यालय चित्तौड़, सर्वोदय साधना आश्रम चंदेरिया तथा कई बाल विद्यालय आदि अनेक स्मारक अपने निजी द्रव्य से स्थापित किये। इसी वर्ष 2 जून, 1976 में मुनिजी का अहमदाबाद में स्वर्गवास हुआ और दाह संस्कार सर्वदेवम्यतन चंदेरिया में हुआ । मुनि जिनविजय जी न केवल संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी तथा गुजराती भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान ही थे, अपितु प्राचीन लिपि, पुरातत्व और इतिहास के भी धुरंधर विद्वान् थे । जैन साहित्य के तो मूर्धन्य विद्वान् थे ही। 'हरिभद्राचार्यस्य समयनिर्णय:' (संस्कृत) और आत्मकथा के अतिरिक्त इनको स्वतन्त्र रूप से लिखित पुस्तकें प्राप्त नहीं हैं किन्तु इनके प्रधानसम्पादकत्व में और सम्पादकत्व में प्रकाशित पुस्तकों के प्रधान संपादकीय प्राक्कथनों में तथा विश्लेषणात्मक एवं शोधपूर्ण विस्तृत भूमिकाओं में इन्होंने इतना अधिक लिखा है कि इन समस्त
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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