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________________ 278 24. मानकवि II ये खरतरगच्छ के वाचक सुमतिमेरु के शिष्य थे। इन्होंने “संयोग द्वालिशिका' नामक 73 पद्यों की श्रृंगारिक रचना अमरचन्द मुनि के लिये सं. 1773 में बनाई है। कवि की अन्य दो रचनायें वैद्यक सम्बन्धी हैं, पर हैं बड़े महत्व की। पहली रचना 'कवि विनोद' 7 खण्ड में सं. 1745 में लाहोर में रची गई, किन्तु इसमें कवि ने स्वयं को बीकानेर वागे स्पष्ट रूप से लिखा है। दूसरी रचना "कवि प्रमोद" 9.उल्लास में पूर्ण हुई है, पद्य संख्या 2944 है। सं. 1746 में इसकी रचना हुई है। कवि ने इसमें भी अपने को बीकानेर वासी तलाया . सुमतिमेरु वाचक प्रकट पाठक श्री विनैमेरु। ताको शिष्य मनि मानजी, वासी बीकानेर । 111 संवत सतर छयाल सुभ, कातिक सुदि तिथि दोज । 'कवि-प्रमोद' रस नाम यह, सर्वग्नथनि को खोज। 12 । 25. कवि लालचन्द इनका दीक्षानाम लाभवर्द्धन था। इनके गुरु शान्तिहर्ष थे और जिनहर्ष गुरुझाता थे। ये अपने गुरुभाई जिनहर्ष की तरह राजस्थानी के सुकवियों में से हैं। इनकी हिन्दी रचनाओं में "लीलावतीगणित"सं. 1736 बीकानेर में, 'अंक प्रस्तार' सं. 1761 में रचित गणित विषयक रचनायें प्राप्त व प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी 'स्वरोदय भाषा' और 'शकुन दीपिका चौपाई' भी अपने विषय की अच्छी रचनायें हैं । 26. जोशीराय मण ये बीकानेर के महाराजा अनूपसिंहजी से सम्मानित थे। जोशीराय ने राजस्थानी में बड़ी सुन्दर रचनायें की हैं। साथ ही इन्होंने हिन्दी में "महाराजा सुजाणसिंह सम्बन्धी वरसलपुर गढ़ विजय" इसका दूसरा नाम 'सुजाणसिंह रासो' सं. 1767 और 1769 के मध्य में बनाया है। यह रचना सं. 1769 की लिखित प्रति से संपादित होकर 'वरदा' के जर 1973 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है। 27. जोगीदास मयेण ये जोशीराय मथेन के पुत्र थे। इन्होंने वैद्यकसार नामक हिन्दी पद्य ग्रन्थ सं. 1792 में बीकानेर महाराजकूमार जोरावर सिंह के नाम से बनाया है। इसमें जोशीराय को सम्मानित करने का उल्लेख इस प्रकार है : बीकानेर वासी विशद, धर्मकथा जिह धाम । स्वेताम्बर लेखक सरस, जोशी जिनको नाम 1721 अधिपति भूप अनप जिहि, तिनसों करि सुभभाय । दीय दुसालौ करि करै, कह यौ जु जोसीराय 1731 जिनि वह जोसीराय सुत,जान हु जोगीदास। संस्कृत भाषा भनि सुनत, भौ भारती प्रकाश 1741 जहां महाराज सुजान जय, वरसलपुर लिय प्रांन । छंद प्रबन्ध कवित्त करि, रासो कह.यो बखांन 1751 28. नयनसिंह ये खरतरगच्छ के पाठक जसशील के शिष्य थे। सं. 1786 में इन्होंने भत हरि शतकत्रय भाषा की रचना बीकानेर राजवंश के महाराज प्रानन्दसिंह के लिये की थी। इस.
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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