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________________ 263 (ii) वर्तमान जीवन की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को, प्राचीन कथ्य को आधार बना कर प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति भी कुछ कहानीकारों में परिलक्षित होती है । ये कहानीकार परम्परागत धार्मिक कथानक को आधार अवश्य बनाते हैं पर उसके माध्यम से आधुनिक जीवन-संवेदन को व्यंजित करना चाहते हैं । डा. नरेन्द्र भानावत के 'कुछ मणियां कुछ पत्थर', श्री महावीर कोटिया के 'बदलते क्षण', श्री शांतिचन्द्र मेहता के 'सौन्दर्य - दर्शन' और श्री केसरीचन्द सेठिया के 'मुक्ति के पथ पर कहानी संग्रहों में यह प्रवृत्ति देखी जा सकती है । इन कहानीकारों ने कतिपय ऐसी कहानियां भी लिखी हैं जिनका कथ्य परम्परागत न होकर आधुनिक जीवन स्थितियों से लिया गया है और उसमें जैन-संस्कृति के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने की प्रवृत्ति रही है । (iii) जैन आगम और पुराण ग्रन्थों में इतिहास और धर्म शास्त्रों में तथा लोक जीवन और लोक-साहित्य में ऐसे कई प्रेरणादायी प्रसंग, रूपक, दृष्टान्त भरे पड़े हैं। जिन्हें पढ़ कर जीवन में हारा-थका निराश व्यक्ति आस्था और विश्वास का सम्बल पाकर अपने जीवन को सतेज और सार्थक बना सकता है । ऐसे मार्मिक, ज्ञानवर्धक, प्रेरणादायी और वृत्तिपरिष्कारक प्रसंगों का चयन कर, लघुकथा, बोध कथा, और संस्मरणों के रूप में कई सुन्दर संकलन प्रकाशित किए गए हैं । व्याख्यान देते समय जैन संत ऐसे दृष्टान्तों, संस्मरणों और रूपकों का विशेष रूप से प्रयोग करते हैं । आचार्य श्री जवाहरलालजी म. सा. के प्रवचनों से संकलित ऐसी कथाएं 'उदाहरणमाला' भाग 1, 2, 3 में प्रकाशित की गई हैं । इसी प्रकार के अन्य प्रमुख संकलन हैं--श्री देवेन्द्र मुनि कृत 'प्रतिध्वनि', श्री गणेश मुनि कृत 'प्रेरणा के बिन्दु', श्री भगवति मुनि 'निर्मल कृत'लो कहानी सुनो' 'लो कथा कहदूं', मुनि श्री छतमलजी कृत 'कथा कल्पतरु, श्री अशोक मुनि कृत 'इनसे सीखें, श्री उदय मुनि कृत 'प्रिय दृष्टान्तोदय', आदि । (iv) दैनन्दिन जीवन में व्यवहृत विभिन्न वस्तुओं, जीवन की साधारण घटनाओं और प्रकृति के विविध उपादानों को माध्यम बनाकर भी कथात्मक ढंग से मार्मिक संस्मरण और भाव भीने गद्य काव्य लिखे गये हैं । इनमें अनुभूति की प्रधानता और भावों की गहराई रहती है । साधारण बातों को पकड़ कर सार्वभौमिक जीवन सत्यों को उद्घाटित करने में ये विशेष सफल होते हैं । आज के आस्थाहीन युग में ये छोटे-छोटे जीवन-प्रसंग महान् शक्ति और स्फूर्ति का अहसास कराते हैं । दार्शनिक संवेदना के धरातल से लिखे जाने के कारण कहीं-कहीं ये विचार बोझिल अवश्य हो गये हैं। श्री चन्दनमुनि कृत "अंतर्ध्वनि”, साध्वी राजीमती कृत "पथ और पथिक", श्री देवेन्द्र मुनि कृत “चिन्तन की चांदनी", "अनुभूति के आलोक में", श्री भगवती मुनि “निर्मल" कृत “अनुभूति के शब्द - शिल्प" इस दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय हैं । (घ) जीवनी : -- कथा साहित्य की घटनाएं या पात्र काल्पनिक हो सकते हैं परन्तु जीवनी में वर्णित घटनायें या पात्र सच्चे होते हैं । जीवनी, इतिहास और उपन्यास के बीच की चीज़ है जिसका नायक वास्तविक होने के कारण अधिक व्यक्तित्वपूर्ण होता है । जीवनी का उद्देश्य किसी ऐसे चरित्र को प्रकाश में लाना होता है जिसका समाज की प्रगति और राष्ट्र की उन्नति में विशेष सहयोग रहा हो । सफल जीवनी लेखक के लिये आवश्यक है कि वह चरित्रनायक के भावों, विचारों तथा जीवन-दर्शन से पूर्णतया परिचित होकर भी उससे निर्लिप्त
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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