________________
264
हो यक्तिगत देष और राग के भाव से ऊपर उठा हो और साथ ही अपने वर्णन में सच्चा और प्रामाणिक हो। इन गुणों के अभाव में लिखी हुई जीवनी या तो स्तुति मात्र होगी या निन्दा।
आधुनिक ढंग से जीवनिया लिखा जाना इस युग की विशेष प्रवृत्ति है। प्राचीन यग में जो महापरुष हए हैं, वे यात्म-विज्ञापन से प्रायः दूर रहते थे। अतः अन्तक्ष्यि के रूप में उनके सम्बन्ध में बहत क ज्ञातव्य प्राप्त होता है। जैन परम्परा में गुर्वावली, पट्टावली आदि के रूप म धर्माचाया बार मनियों के महत्त्वपूर्ण जीवन-प्रसंग लिखित मिलते हैं। समसामयिक शिष्य भनियों और भक्त श्रावकों द्वारा लिखित छोटे-छोटे पद्यबद्ध पाख्यान चरित आदि मिलते हैं। ग्रन्थों की हस्तलिखित पांडुलिपियों के अन्त में प्रशस्ति रूप में रचनाकार, लिपिकार अपनी गरुपरम्परा का निर्देश भी करते रहे है। इन सब स्रोतों से जीवनी लेखक सामग्री संकलित करता है।
__ यह सही है कि चरितनायक के महत्त्वपूर्ण प्रसंगों को सुरक्षित रखने के प्रयत्न तो यहां अवश्य होते रहे पर जीवनी लेखन का व्यवस्थित कार्य प्राधुनिक युग की ही देन है। राजस्थान में जैन धर्माचार्यों का आध्यात्मिक जीवन और सामाजिक चरित्र के उन्नयन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जैन श्रमण ग्रामानुग्राम पद विहार करते हुए जन-मानस को सदाचार-निष्ठ साहित्यिक जीवन जीने को प्रेरणा देते रहे हैं। पादविहारी होने से वे जन-जीवन के निकट संपर्क में तो पाते ही हैं, विविध प्रकार की अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजरने के कारण उनका स्वयं का जोवन भी नानाविध अनुभवों का संगम बन जाता है। अनेक व्यसनग्रस्त दिग्भ्रमित लोग उनसे प्रेरणा पाकर सन्मार्ग की ओर बढ़ते हैं। ऐसे महान् प्रभावक प्राचार्यों और मनियों की जीवनियां लिखने की और राजस्थान के जीवनी लेखकों का ध्यान गया है और कतिपय प्रामाणिक जीवन ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। इनमें उल्लेखनीय ग्रन्थों के नाम हैं--पूज्य श्री जवाहरलालजी म. सा. की जीवनी (पं. शोभाचन्द्र भारिल्ल, डा. इन्द्रचन्द शास्त्री), पूज्य गणेशाचार्य जीवन चरित (श्री देवकुमार जैन), मुक्ति के पथ पर--श्री सुजानमल जी म. सा. की जीवनी (मनि श्री लक्ष्मीचन्द्रजी म.) अमरता का पुजारी-प्राचार्य श्री शोभाचन्द जी म. की जीवनी (पं. दुःखमोचन झा), राजस्थान कसरी-पुष्कर मुनिजी म. जीवनी और विचार (श्री राजेन्द्र मनि) यग प्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि (श्री अगरचन्द भंवरलाल नाहटा), प्राचार्य तुलसीः जीवन दर्शन (मनि श्री बद्धमल जी), दिव्यतपोधन-तपस्वी श्री वेणीचन्दजी म. की जीवनी (मनि श्री महेन्द्र कुमारजी “कमल"), दिव्य जीवन-श्री विजय वल्लभ सूरि जी म. की जीवनी (श्री जवाहरचन्द पटनी),जय ध्वज-प्राचार्य श्री जयमल्ल जी म. का जीवन वृत्त, (गुलाबचन्द जैन) जैन कोकिला साध्वी श्री विचक्षणश्री जी म. की जीवनी (भंवरी देवी रामपुरिया), साधना पथ की अमर साधिका-महासती श्री पन्ना देवी जी म. की जीवनी (साध्वो सरला, साध्वी चन्दना), महासती श्री जसकवर-एक विराट व्यक्तित्व (आर्या प्रेमकुवर), विश्व चेतना के मनस्वी संत मनि श्री सुशील कुमार जी की जीवनी (मुनि श्री समन्त भद्र), उपाध्याय श्री प्यारचन्दजी म. का जीवन-चरित्र (रतनलाल संघवी)।
स्वतन्त्र जीवनी ग्रन्थों के अतिरिक्त सम्बद्ध महापुरुषों और साहित्यकारों के कृतित्व और व्यक्तित्व की विवेचना करने वाले समीक्षा ग्रन्थों में भी जीवनी अंश दिया जाता रहा है। इसी तरह महापुरुषों की स्मति या उनके अभिनन्दन में प्रकाशित किये जाने वाले स्मति ग्रन्थों व अभिनन्दन ग्रन्थों में भी जीवनी का प्रामाणिक अंश जड़ा रहता है। ऐसे समीक्षा ग्रन्थ एवं अभिनन्दन ग्रन्थ भी कई प्रकाशित हुए हैं।
इन जीवनी ग्रन्थों में जीवनी नायक के व्यक्तित्व के बहिरंग पक्ष में उन के जन्म, बाल्यकाल, वैराग्य, साधना, संयम, विहार, जन-सम्पर्क, धर्मप्रचार, धर्म परिवार आदि का तथा अन्तरंग पक्ष में उनके प्रांतरिक गुणों और महत्त्वपूर्ण विचारों का सुन्दर विवेचन-संकलन किया जाता है ।।