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________________ 240 साहित्यिक मूल्यों की दृष्टि से इनकी रचनाओं का महत्व चाहे उतना न हो किन्तु तत्वचिंतन एवं हिन्दी गद्य के निर्माण व प्रचार की दृष्टि से इनका कार्य अभिनन्दनीय है। हिन्दी गद्य की बाल्यावस्था में बहुत रचनाओं का गद्य में निर्माण कर इन्होंने उसकी रिक्तता को भरने का प्रयास किया और इस दिशा में महत्वपूर्ण योग दिया है। इनकी भाषा का नमूना निम्नानुसार है: "जैसे बानर एक कांकरा के पडे रोवै तैसे याके देह का एक अंग भी छीजे तो बहुतेरा रोवै। ये मेरे और मैं इनका झूठ ही ऐसे जडन के सेवन तै सुख मानै। अपनी शिवनगरी का राज्य भूल्या, जो श्री गुरु के कहे शिवपुरी कौं संभालै, तो वहां का आप चेतन राजा भविनाशी राज्य करें।" 5. महाकवि दौलतराम कासलीवाल: दौलतराम कासलीवाल ने जिस प्रकार काव्य ग्रन्थों का निर्माण किया उसी प्रकार गद्य में भी कितने ही ग्रन्थों का निर्माण करके राजस्थानी एवं हिन्दी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कवि की प्रथम रचना पुण्यास्रवकथाकोश है और वह गद्य में है। इसका रचना काल संवत् 1777 (सन् 1720 - कवि उस समय आगरे में थे और वहीं पर विद्वानों के संसर्ग से इनमें लिखने की रुचि जाग्रत हुई। अब तक इनकी निम्न रचनायें प्रकाश में आ चुकी हैं। 1. पुण्यालवकथाकोश (सं. 1777) 3. भादि पुराण (सं. 1823) 5. हरिवंश पुराण (सं. 1829) 7. सारसमुच्चय 2. पद्मपुराण (सं. 1823) 4. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय (सं. 1827) (अपूर्ण छोड दिया) 6. परमात्म प्रकाश पुण्यास्रवकथाकोश, पद्मपुराण, आदिपुराण एवं हरिवंशपुराण विशालकाय ग्रन्थ हैं यद्यपि ये सभी संस्कृत भाषा से अनुदित कृतियां हैं। लेकिन कवि ने अपनी ओर से भी जो सामग्री जोडी है उससे ये सभी ग्रन्थ मौलिक ग्रन्थ हो गये हैं। कवि के समय तक अनुवाद में जो सूनासूना सा नजर आता था उसे अपनी कृतियों में जड से उखाड़ फेंका। यही कारण है कि उनके पदमपुराण, हरिवंशपुराण, प्रादि पुराण एवं पुण्यानवकथाकोश का स्वाध्याय गत 200 वर्षों में जितना हुआ उतना स्वाध्याय संभवतः अन्य किसी रचना का नहीं हुआ होगा। आज भी ये सभी रचनायें प्रत्यधिक लोकप्रिय हैं। डा. जयकिशन के शब्दों में दौलतराम का हिन्दी गद्य संस्कृत परिनिष्ठ है। वह अपभ्रंश प्राकृत तथा देशी शब्दों से मुक्त है। वह ब्रज भाषा का गद्य है लेकिन फिर भी उसमें खडी बोली का पूर्व रूप देखा जा सकता है। दौलतराम के गद्य का नमूना देखिये: "मालव देस उजेणी नगरी विर्ष राजा अपराजित राणी विजयां त्यांक विनयश्री नाम पुत्री हुई। हस्तिशीर्षपुर के राजा हरिषेण परणी। एक दिन दंपति वरदत्त मुनि नै आहार दान देता हुआ। पाछै बहुत कालतांइ राज्य कीयौ। एक रात सज्याग्रह विर्ष विनयश्री पति सहित सूती थी। अगर का धूप का धूम करि राजा राणी मृत्यु प्राप्ति हुआ। मध्य भोग भूमि विष उपज्यां ।"-पुण्यास्रवकथाकोष दौलतराम का जन्म जयपुर प्रदेश के कसबा ग्राम में संवत् 1749 में हुआ था। उनका बन्म नाम बेगराज था। मागरा, उदयपुर एवं जयपुर उनका साहित्यिक क्षेत्र रहा। ये जीवन
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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