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भर जयपुर महाराजा की सेवा में रहे तथा साथ ही में उनके कृपा पात्र भी रहे। इनका स्वर्गवास भादवा सुदी 2 संवत् 1829 को जयपुर में हुआ। इनकी कृतियों का सामान्य परिचय निम्न प्रकार है
पुण्यास्रव कथाकोष :
पण्यास्त्रव कथाकोष में 59 कथाओं का संग्रह है। इनके अतिरिक्त 9 लघ कथाएं प्रमुख कथाओं में आ गयी हैं जिससे उनकी संख्या 65 हो गई है। प्रत्येक कथा कहने का मुख्य उद्देश्य कथा नायक के जीवन का वर्णन करने के अतिरिक्त, नैतिकता, सदाचार और अच्छे कार्यों की परम्परा को जन्म देना है। सभी कथायें सरल एवं रोचक शैली में लिखी गयी हैं। कथाकोश में निम्न कथाओं का संग्रह है:
___ 1. जिनपूजा व्रत कथा, 2. महाराक्षस विद्याधर कथा, 3. मैंढक की कथा, 4. भरतकथा, 5. रत्नशेखर चक्रवर्ती कथा, 6. करकण्डू कथा, 7. वनदन्त चक्रवर्ती कथा, 8. श्रेणिक कथा, 9. पंच नमस्कार मंत्र कथा, 10. महाबली कथा, 11. भामण्डल कथा, 12. यमराज कथा, 13. भीम केवली कथा 14. चाण्डाल कूकरी कथा, 15. सुकोशल मुनि कथा, 16. कुबेरु मित्रावेष्ठि कथा, 17. मेघ कुमार कथा, 18. सीताजी की कथा, 19. रानी प्रभावती कथा 20. राजा व्रजकरण कथा, 21. बाई नीली कथा, 22. चाण्डाल कथा, 23. नाग कुमार कथा, 24. भविष्यदन्त कथा, 25. अशोक रोहिणी कथा 26. नन्दिमित्र कथा, 27. जामवन्ती कथा, 28. ललित घण्टा कथा, 29. अर्जुन चाण्डाल कथा, 30. दानकथा, 31. जयकुमार सुलोचना कथा, 32. वज्रगंध कथा, 33. सुकेत श्रेष्ठि कथा, 34. सागर चक्रवर्ती कथा, 35. नलनील कथा, 36. लवकुश कथा, 37. दशरथ कथा, 38. भामण्डल कथा, 39. सुषीमा कथा, 40. गंधारी कथा, 41. गौरी कथा, 42. पद्मावती कथा, 43. धन्यकुमार कथा, 44. अंगनीला ब्राह्मणी कथा, 45. पांच केसरी कथा, 46. अकलंकदेव कथा, 47. समंतभद्र कथा, 48. सनतकुमार चक्रवर्ती कथा, 49. संजय मुनि कथा, 50. मधु पिंगल कथा, 51. नागवत कथा, 52. ब्राह्मण चक्रवर्ती कथा, 53. अंजन चोर कथा, 54. अनन्तमती कथा, 55. उदयन कथा, 56. रेवती रानी कथा, 57. सेठ सूदर्शन कथा, 58. वारिषेण मुनि कथा, 59. विष्णकुमार मनि कथा, 60. वचकुमार कथा, 61. प्रीतिकर कथा, 62. सत्यभामा पूर्वभव कथा, 63. श्रीपाल चरित्र कथा, 64. जम्बूस्वामी कथा ।
पपपुराण :
पद्मपुराण कवि की मूल कृति नहीं है किन्तु 10-11 वीं शताब्दी के महाकवि रविषेणाचार्य की संस्कृत कृति का गद्यानुवाद है। लेकिन कवि की लेखन शैली एवं भाषा पर पूर्ण अधिकार होने से यह मानों स्वयं की मूल रचना के समान लगती है। इसमें 123 पर्व हैं जिनमें जैन धर्म के अनुसार रामकथा का विस्तार से वर्णन हुआ है।
पद्मपुराण की भाषा खडी बोली के रूप में है किन्तु कुछ विद्वानों ने इसे ढूढारी भाषा के रूप में स्वीकार किया है। पुराण की भाषा अत्यधिक मनोरम एवं हृदयग्राही है। मादि पुराण :
मादि पुराण विशाल काय ग्रन्थ है। लेकिन कवि ने भाषा टीका की एक ही शैली को पर्पोवाया है। प्राचार्य जिनसेन के क्लिष्ट शब्दों का पर्थ जितने सरल एवं बोधगम्य शब्दों में