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________________ राजस्थानी गद्य साहित्यकार 9 -डा. हुकमचन्द भारिल्ल राजस्थानी में गद्य लेखन की परम्परा अपभ्रंश काल से लेकर वर्तमान काल तक अविच्छिल रूप से चली आ रही है। इस साहित्य की यह विशेषता रही है कि जहां हिन्दी साहित्य में गद्य का प्राचीन रूप नहीं के बराबर है वहां राजस्थानी में गद्य साहित्य मध्यकाल से ही पूर्ण विकसित रूप में मिलता है। वैसे तो राजस्थानी में गद्य लिखने का प्रारम्भ 13-14 वीं शताब्दि से ही हो गया था लेकिन 16 वीं शताब्दि तक माते-आते वह पूर्ण विकसित हो चुका था। दिगम्बर जैन कवियों ने प्राकृत एवं संस्कृत ग्रंथों की बालावबोध टीकायें लिख कर राजस्थानी गद्य के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। 1. पाण्डे राजमल्लः राजस्थानी गद्य के विकास में जिन विद्वानों ने अपना योगदान दिया था उनमें पाण्डे राजमल्ल का नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। ये 16 वीं शताब्दि के विद्वान् थे और विराटनगर (बैराठ) इनका निवास स्थान था। प्राकृत एवं संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान होने के साथ अध्यात्म की ओर इनकी विशेष रुचि थी। इन्होंने प्रसिद्ध प्राध्यात्मिक ग्रन्थ समयसार कलश पर बालावबोधिनी टीका लिखी थी। टीका पुरानी शैली पर खण्डान्वयी है। शब्द पर्याय देते हुए भावार्थ लिखा गया है। यद्यपि उनकी भाषा संस्कृत परक शब्दों से युक्त है। वाक्यों में बराबर प्रवाह पाया जाता है। पाण्डे राजमल्ल के गद्य का एक नमूना देखिये ___"यथा कोई जीव मदिरा पीबाइ करि अविकल कीजे छ, सर्वस्व छिनाइ लीजै छ। पदतै भ्रष्ट कीजै छै तथा अनादि ताई लेइ करि सर्वजीवराशि राग, द्वेष, मोह, अशुद्ध करि मतवालो हमो छै तिहि ते ज्ञानावरणादि कर्म को बैध होइ छै --" उक्त उद्धरण से जाना जा सकता है कि भाषा जयपुरी है किन्तु सर्वनाम और क्रियानों का प्रर्थ जान लेने पर वचनिका का अर्थ सुगमता से जाना जा सकता है। 2. प्रखयराज श्रीमाल:-- प्रखयराज 17 वीं शताब्दि के विद्वान् थे। इनके जन्म, स्थान एवं जीवन के संबंध में कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता। लेकिन भाषा एवं शैली की दृष्टि से वे जयपुर प्रान्त के होने चाहिये। लेखक की अभी तक निम्न रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं -- 1. चतुर्दश गुण स्थान चर्चा 2. विषापहार स्तोल वचनिका 3. कल्याणमन्दिर स्तोत्र भाषा वचनिका 4. भक्तामर स्तोत्र भाषा वचनिका भूपाल चौबीसी भाषा वचनिका प्रथम ग्रन्थ के अतिरिक्त शेष चार ग्रन्थों पर कवि ने भाषा वचनिका लिखी है। लेकिन चतुर्दश गुणस्थान चर्चा एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है जिसमें चौदह गुणस्थानों का अच्छा विवेचन किया 1. बोरगाणो वर्ष 3 मंक 1 पृष्ठ 101
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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