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हैं ।
इन पत्रों में मंत्री मुनि मगनलाल जी, साध्वी प्रमुखा लाडाजी तथा मातुश्री वन्ना जी को लिखे गये पत्र विशेष उल्लेखनीय हैं ।
नथमल जी स्वामी:--
श्राप टमकोर निवासी हैं । अपनी माता जी के साथ अष्टमाचार्य कालू गणी के समय वि.सं. 1987 के माघ मास में श्रापने सरदार शहर में दीक्षा ग्रहण की। श्राप प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी व गुजराती आदि भाषाओं के विशिष्ट विद्वान् हैं । आपकी अनेक साहित्यिक व शोधपूरक कृतियां भी प्रकाशित हुई हैं । आप संस्कृत के प्राशु कवि के रूप में भी विख्यात है । वर्तमान में श्रागमो का पाठ सम्पादन आपकी देखरेख में ही हो रहा है । दर्शन, योग व साहित्य पर श्रापकी समान गति है । राजस्थानी में श्रापके गद्य गीत तथा एक फूल लारे काटो शीर्षक गद्य रचनाएं मिलती हैं । दोनों प्रकार की रचनाएं साहित्यिक किन्तु दार्शनिक संकेत से युक्त हैं । गद्य गीत का उदाहरण इस प्रकार है
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अन्य :
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"मे बरस्यो । पाणी रा परपोटा उछल-उछल ऊंचा जाण लाग्या । ज्य उछल्या त्यू ही मिटग्या । नीचे नाखण ने श्राकास प्रापरी छाती खोल दी । ऊंचा लेज्यावण ने हाथ कानी पसार्या - नाखणेवाला घणाई है । उठाणेवाला किताक मिले ?"
तेरापन्थ के उपर्युक्त राजस्थानी गद्यकारों के अलावा बागोर वाले नथमल जी स्वामी ने भी राजस्थानी गद्य में एक दो गद्य रचनाएं की हैं, ऐसा बताया जाता है ।