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________________ 245 नाम कालराम था। मलचन्द जी कोठारी आपके पिता और छोगाजी माता थी। बि.: 1944 की प्राश्विन शक्ला ततीया को अपनी माता के साथ बीदासर (मारवाड) में दीक्षा ग्रह की। डालगणी के देवलोक के पश्चात् वि. सं. 1966 की भाद्रपद पूर्णिमा को लाडन में प्राचा पद पर आसीन हए। गंगापुर मेवाड में वि. सं. 1993 की भाद्रपद शुक्ला षष्ठी को भापव स्वर्गवास हुमा । राजस्थानी गद्य में आपका काल विषय पर एक लेख तथा पत्र साहित्य मिलता है रत्र आपने अपने प्राज्ञानवर्ती साध-साध्वियों को समय-समय पर लिखे हैं। ऐसे पत्रों की संख्य नगभग बीस है। संघ संचालन तथा अनशासन की दष्टि से ये पत्न बहुत उपयोगी हैं। वि.स 1976 की चैत्र शुक्ला 3 को अपने शिष्य भीम जी को लिखे एक पत्र का कुछ अंश दृष्टव्य है "शिष्य भीमजी प्रादि सं सुखसाता बंचे और चित घणों समाधि में राखजे। को चित में विचारणा राखजे मती. अनै सुजानगढ में आछी तरें सं रहीजे सुजानगढ : (सगला) संत काम तने पूछने करसी। प्राग्या मर्याद में कहिणो सुणनो पाछी त राखज्यो -" चौथमल जी स्वामी: प्राप जावद (मालवा) के निवासी थे। पन्द्रह वर्ष की उम्र में सप्तमाचार्य डाल गणी के पास वि. सं. 1965 में शिक्षा ली और वि. सं. 2017 में 48 वर्ष का साधु जीवन पालते हुए इनका देहावसान हया। ये संस्कृत, राजस्थानी एवं व्याकरण के प्रकाण्ड विद्वान थे। तत्संबंधी इनकी रचनाएं भी मिलती हैं। तेरापंथ के समस्त हस्तलिखित ग्रन्थ इनकी देखरेख में ही रहते थे। कालूजी स्वामी बडा के वि. सं. 1958 में स्वर्गवास हो जाने के पश्चात् तेरापंथ की ख्यात आप ही राजस्थानी गद्य में लिखते थे। उस ख्यात का परिचय उदाहरण कालूजी स्वामी बडा के परिचय के साथ दे दिया गया है। ख्यात के अलावा राजस्थानी गद्य की कोई अन्य रचना भापकी उपलब्ध नहीं होती है। 9. हेमराज जी स्वामी: मेवाड प्रदेशान्तर्गत भातमा गांव के निवासी थे। अष्टमाचार्य कालू गणी के समय में वि.स. 1969 में दीक्षा ग्रहण की तथा वि. सं. 1994 में इनका स्वर्गवास हुमा। इनके पच्चीस बोल अर्थ संग्रह तथा बीस से अधिक थोकडे मिलते हैं। प्राचार्य श्री तुलसी: . युग प्रधान प्राचार्य श्री तुलसी तेरापन्थ धर्म संघ के नवम् प्राचार्य हैं। आपका जन्म वि. सं. 1971 की कार्तिक शुक्ला द्वितीया को लाड (मारवाड) में हुमा । मापके पिता भोसवाल जाति के खटेऊ गोत्रीय झमरमलजी थे। माता का नाम वदनांजी है। ग्यारह की अल्प वय में ही वि. सं. 1982 की पौष कृष्णा पंचमी को लाडनू में ही आपकी दीक्षा हुई। युवाचार्य पद वि.सं. 1993 की भाद्रपद शुक्ला ततीया को एवं प्राचार्य पद इसके छ:दिन बाद हा नवमी को प्राप्त किया। मापने हिन्दी, संस्कृत व राजस्थानी में विपुल साहित्य लिखा है किन्तु राजस्थानी गध के रूम में प्रापका केवल पत्रात्मक साहित्य ही उपलब्ध होता है। ऐसे लगभग 150 पत्र मिलते
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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