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________________ 138 व्य जीव-माव जीवरीपरपा: बार कुछ व्यक्ति द्रव्य जीव तथा भाव जीव को एक सममते है, लेकिन दो पात्मामों का विश्लेषण करते हुये इसे इसमें समझाया गया है। निक्षेपां री चरचा: द्रव्य निक्षेप, नाम निक्षेप, स्थापना निक्षेप और भाव निक्षेप, इन चारों में से कोरबा निक्षेप निन्दनीय तथा प्रवन्दनीय है, इसकी इसमें चर्चा की गई है। टीकम होसी री घरचा:-- कन्छ प्रान्त के टीकमजी डोसी नामक प्रावक की योग संबंधी संकायों का समाधान सक्ष्म विश्लेषण के द्वारा इसमें किया गया है। पांच भाव रो परचा: इसम उदय भाव, उपशम भाव.क्षायक भाव.मायोपशामिक भाव तथा परिणामिक भाव की विवेचना की गई है। इस रचना का प्रारम्भिक मंश रचना उदाहरण की दृष्टिसनिम्म "अथ पांच भाव री चरचा लिख्यते । उदभाव मोह करम रा उ उभार छते तो सावध छ। भर करम रा उदै सूउदेभाव छते सावच निरवचनहीं। सहन भाव छ ते तो मोहनी करम उपशमें ये छ। दरसन मोहनी उपशमें योचो उपवन समकित छ।" थोकड़ा:-एक ही विषय के संक्षिप्त संग्रह को थोकड़ा (सं. स्वोत) कहते हैं। पुष पांच योकड़े दस हस्तलिखित पत्रों में उपलब्ध हैं। परिचय निम्न है:पांच भाव रो थोकड़ो, पैलो: पांच भावों प्रर्थात् उदय, उपशम, क्षायक, क्षायोपशमिक पोर पारिणामिक मारो विभिन्न यन्त्रों माध्यम से इसमें विश्लेषण किया गया है। पांच भाव रो थोकडो, दूजो: उदय निष्पन्नादिक बोलों पर उपर्युक्त पांच भावों का मन्त्रों द्वारा विवेचन किया । पाठ प्रात्मा रो थोकड़ो: इस पोकड़े में पाठ प्रात्मानों का विवरण यन्त्रों द्वारा प्रस्तुत किया गया है। भिक्षु पिरिछा: इसमें भीषणजी से समय-समय पर की गई विभिन्न प्रकार की प साहात।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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