SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहिये ए दोनुई धरम भगवान री माग्य मांहि छ। एदोनई धरम ग्यान परसण पर चारित्र मांहि छ।" 2. 181 बोलां री हण्डी:-यह अट्ठारह पत्नों की एक छोटी रचना है। साधुओं के प्राचार-व्यवहार को लेकर सूत्रों की साक्षियां उद्घत करते हुये एवं विभिन्न उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुये इसकी रचना की गई है। साधुओं के प्राचार व्यवहार संबंधी समस्त बातें इसमें समाहित हैं। चरचायः __चरचा (सं. चर्चा) संज्ञक कुल दस रचनायें मिलती हैं। संग्रहीत रूप में कुल 25 पत्रों में समाप्त हुई हैं। सैद्धान्तिक व मान्यता संबंधी विभिन्न तथ्यों को सरल राजस्थानी में चर्चा रूप में इन रचनाओं में समझाया गया है। समस्त चरचानों का सूचनात्मक परिचय निम्न है। इस लेख की कलेवरसीमा के कारण प्रत्येक चरचा का रचना उदाहरण नहीं देकर केवल : एक का ही उदाहरण अन्त में प्रस्तुत किया जा रहा है। बोगा री चरचाः इसमें मन, वचन और काया अर्थात् इन तीनों योगों की मुख्य रूप से चर्चा की गई है . शुभ अशुभ योग की प्रवृत्ति कैसे होती है, इसका भी इस रचना में सूक्ष्म विश्लेषण है। जिवाण्या री चरचा:-- जो व्यक्ति जिन आज्ञा के बाहर धर्म की स्थापना करते हैं, उन स्थापनाओं के बारे में विवेचन करते हये जिन धर्म के सही स्वरूप की इसमें चर्चा की गई है। खुली चरचा:- . .. किस कर्म के क्षायोपशम से साधुत्व की प्राप्ति होती है, इसकी खुली चर्चा इसमें की गई है। .. मानव संवररी चरचा: परमा. आस्रव तथा संवर के बारे में व्याप्त भ्रान्तियों का इसमें स्पष्ट विवेचन किया गया है। प्रास्रव व संवर जीव होता है, यह सप्रमाण दर्शाया गया है। कालवाही की, वरचा: जो व्यक्ति कार्य सिद्धि में केवल काल को ही प्रधानता देते हैं, वह प्रधानता जैनागम के अनुकूल नहीं है। इसका इसमें विवेचन है। इन्द्रियवादी की चरचा:-- इन्द्रियों को कुछ व्यक्ति सावध निरबध कहते हैं, वह सूत्र-सम्मत नहीं है। इसकी चर्चा इसमें की गई है !...
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy