SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 31. 4. ब्रह्म नाथू: ब्रह्मचारी नाथू का साधना स्थल वर्तमान टौंक जिले में स्थित 'नगर' ग्राम का जैन मन्दिर था। टोंक जिले के प्रमुख जैन मन्दिरों के शास्त्र भण्डारों की खोज करते समय ब्रह्म नाय की निम्नलिखित रचनायें प्राप्त हुई हैं: नेमीश्वर राजमती को न्याहुलो (1728) 2. नेमजी की लूहरि 3. जिनगीत 4. डोरी का गीत ३. दाई गीत 8. राग मलार, सोरठ, मारु, धनाश्री के गीत मधुर गीतकर नाथू ब्रह्म की उक्त रचनाओं में नेमिश्वर राजमती को ब्याहुलो एक बड़ी रचना है। इसमें 'तलदी, निकासी, सिन्दूरी, विन्द्रावनी की ढालों में नेमिनाथ और राजमती के समस्त विवाह प्रसंग का वर्णन किया गया है। उबटन, दूलह का श्रृंगार, बारात की निकासी, सभी लोकाचार के वर्णन में कवि ने बडी रुचि ली है। 5. सेवक: कवि लोहट द्वारा सेवक को अपना गुरु लिखे जाने के कारण स्पष्ट है कि सेवक कामाविर्भाव अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुआ। सेवक की दो रचनायें तथा 50 से अधिक पद हैं। इनकी प्रथम रचना 'नेमिनाथ जी का दस भव वर्णन' चौधरियान मन्दिर टोंक में प्राप्त गुटका नं. 102 ब में संग्रहीत है। इस रचना में नेमिनाथ और राजमती के दस जन्मों के अनन्य सम्बन्ध को दिखलाया गया है। सेवक की दूसरी रचना 'चौबीस जिन स्तुति' जैन मन्दिर निवाई (टोंक) के एक गुटके में पृष्ठ 124-26 पर संग्रहीत है। इसमें 30 छंद हैं। सेवक के पद जयपुर के छाबडों के मन्दिर और तेरह पंथी मन्दिर में क्रमशः गुटका न.47 और पद सग्रह न. 946 में प्राप्त हुये हैं। लोहट:-- बघेरवाल जाति में उत्पन्न कवि लोहट के पिता का नाम धर्म तथा बड़े भाइयों का नाम हींग और सुन्दर था। लोहट पहले सांभर और बाद में बूंदी में रहने लगे। अभी तक इनकी केवल दो रचनायें टोंक के जैन मन्दिरों में मिली हैं। लोहट की प्रथम रचना 'अढाई को रासो' का रचनाकाल संवत् 1736 है। इसमें 22 छंदों में मैनासुन्दरी और श्रीपाल की कथा कही गई है। कवि की दूसरी रचना चौढालियो संवत् 1784 में लिखी गई। इसमें 4 ढालों में 50 छंद हैं। ग्रन्थ का विषय जैन प्राचार और नीति है। डा. नरेन्द्र भानावत ने अपने शोध प्रबन्ध 'राजस्थानी वेली साहित्य' में सं. 1735 में रचित इनकी षटलेश्या बेलि का परिचय दिया है। इसके अतिरिक्त कवि की यशोधरचरित (1725), पार्श्वनाथ जयमाला प्रादि रचनायें और मिलती हैं। 7. प्रजयराज पाटणी:-- इनका जन्म सांगानेर में हया। इनके पिता का नाम मनसुख राम अथवा मनीराम था। इन्होंने भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य महेन्द्रकीति से ज्ञान ग्रहण किया और अधिकतर मामेर रहने लगे। अजयराज हिन्दी तथा संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। इनकी 20 रचनायें मिलती है।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy