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________________ 8. कथाकोषभाषा 4. प्रीतंकर चरित्र भाषा 5. ज्ञान समुद्र (1722) 6. धर्म सरोवर (1724) जोधराज के प्रथम चार ग्रन्थ पद्यानुवाद तथा अन्तिम दो कृतियां मौलिक हैं । ज्ञान समुद्र और धर्म सरोवर दोनों ही नीति प्रधान ग्रन्थ हैं । 2. हेमराज:--- इनका आविर्भाव ढूंढाड प्रदेश के सांगानेर गांव में हुआ । हेमराज पाण्डे रूपचन्द के शिष्य थे । अपने जीवन के आखिरी दिनों में हेमराज कामां चले गए। कामां में उस समय कीर्तिसिंह राज्य करते थे । हेमराज का एक मौलिक ग्रन्थ दोहा शतक है । दोहा शतक की समाप्ति कवि ने संवत् 1725 में की थी। इस में नीति संबंधी लगभग सौ दोहे हैं । हेमराज ने आगरावासी पाण्डे हेमराज के गद्यग्रन्थ प्रवचनसार का भी पद्यानुवाद किया है। 3. नेमिचन्द:-- नेमिचन्द ग्रामेर में स्थापित मूलसंघ के शारदा गच्छ के भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति के प्रशिष्य देवेन्द्रकी ( जगतकीर्ति के शिष्य) के अनुयायी थे । यह खण्डेलवाल जाति के सेठी गोत्र के श्रावक थे । नेमिचन्द अपनी आजीविका उपार्जन के अतिरिक्त शेष समय को काव्य रचना में लगाया करते थे । नेमिचन्द के छोटे भाई का नाम झगडू था । इनके प्रमुख शिष्य दो थे । डूंगरसी और रूपचन्द | जैन मन्दिर निवाई (टोंक) के दो गुटकों में प्राप्त इनकी निम्नलिखित रचनायें हैं : 1. प्रीतंकर चौपई (1771 ) 2. नेमिसुर राजमती की लहरि 3. चेतन हरि 4. 5. 6. 218 7. है । छंद हैं। या है । जीव लूहरि सोधन हरि विसालकीर्ति को देहुरो जखडी कडखो 8. 9. श्रासिक को गीत 10. नेमिसुर को गीत 11. पद संग्रह नेमिचन्द की प्रथम रचना एक मौलिक खण्डकाव्य तथा अन्य रचनायें गेय रचनायें हैं । नेमिचन्द के गीत भावपूर्ण तथा मर्मस्पर्शी हैं । डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल ने नेमिचन्द की एक महत्वपूर्ण कृति नेमिश्वर रास की खोज इस ग्रन्थ की रचना संवत् 1769 में हुई । इस रास में 36 अधिकार और 1308 ग्रन्थ की महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसमें गद्य और पद्य दोनों को ही अपनाया
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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