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________________ 117 कविवर बुधजन ने विभिन्न विषयों पर कही गई सूक्तियों को चार भागों में विभाजित किया है, देवानुरागशतक, सुभाषित नीति तथा उपदेशाधिकार। ढंढाड के जैन कवियों में जोधराज और पार्श्वदास के सवैया बड़े मनोहारी हैं। सवैया का प्रयोग दरबारी कवियों ने श्रृंगार रस तथा संत कवियों ने अध्यात्म और नीति के वर्णन के लिये किया है। संत सुन्दरदास की तरह आत्मा व तत्व के विवेचन, संसार की नश्वरता व भयावहता के चित्रण एवं दया, अहिंसा, त्याग आदि नीति तत्वों के प्रतिपादन के लिये जैन कवियों ने सवैये लिखे हैं। इस दृष्टि से जोधराज की दो कृतियां ज्ञान समुद्र और धर्मसरोवर उल्लेखनीय हैं। दोनों कृतियों की छंद संख्या क्रमश: 147 और 387 है। पद साहित्य: विभिन्न राग-रागिनियों से समन्वित गेय पदों की रचना का प्रारम्भ सिद्ध और नाथों द्वारा नवीं दसवीं शताब्दी में ही कर दिया गया था, किन्तु इनकी प्रगतिशील परम्परा सोलहवीं शताब्दी बाद संत और वैष्णव भक्तों के काव्य में उपलब्ध होती है। जैन साहित्य में पद रचना का प्रारम्भ तो वैष्णव भक्तों से कुछ पहले हुमा किन्तु उसका परम्पराबद्ध विकास और प्रसार वैष्णव पद साहित्य के कुछ बाद हो। 18वों और 19वीं शताब्दी में आगरा और जयपुर में विपुल पद साहित्य लिखा गया। प्रागरा के प्रमुख पद रचयिता थे बनारसीदास, भूधरदास, भैया भगवतीदास, द्यानतराय, जगतराय और जगजीवन। जयपुर में विपुल संख्या में पद रचना करने वाले कवियों में नवल, बुधजन, माणिकचन्द, उदयचन्द, नयनचन्द, रत्नचन्द और पार्वदास आदि हैं । उक्त प्रमुख कवियों के अतिरिक्त ऐसे फुटकर कवि तो अनेक हैं जिनके थोडे थोडे पद ही अभी तक जानकारी में पा सके हैं। डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल के अनुसार यदि इन जैन कवियों के पदों की गणना की जाये तो यह संभवत: दस हजार से कम न होगी। जैन पद साहित्य को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है, भक्तिपरक, अध्यात्मपरक, विरहपरक एवं नीतिपरक । भक्तिपरक पदों में तीर्थंकरों का गुणगान, स्वदोषानुभूति, अनन्यता प्रादि भक्ति तत्व विद्यमान हैं। भक्तिपरक पद साहित्य में नवधा भक्ति, प्रपत्तिवाद, दश आसक्तियां आदि तत्वों के साथ-साथ जैनाचायों द्वारा प्रतिपादित दशधा भक्ति का विवेचन जैन भक्तों की समन्वय भावना का प्रतीक है। अध्यात्मपरक पद साहित्य में जैन तत्वों, आत्मा, पुद्गल, परमात्मा, मोक्ष आदि का वर्णन किया गया है। विरहपरक पद साहित्य में राजुल नेमिनाथ प्रसंग को लेकर लिखा गया है। अहिंसा, सत्य, मन की पवित्रता, त्याग, दान, दया आदि नीति तत्व नीतिपरक पद साहित्य में अभिव्यंजित हुये हैं। प्रात्माभिव्यंजन अनुभूति की पूर्णता, भावों का ऐक्य तथा माधुर्यपूर्ण भाषा गीतिकाव्य के सभी तत्व जैन पद साहित्य में विद्यमान हैं। पालोच्यकाल में प्रबन्ध और मुक्तक काव्यों की रचना करने वाले प्रमुख कवि इस प्रकार हैं:1. जोधराज गोदीका:-- जोधराज गोदीका सांगानेर निवासी अमरचन्द गोदीका के पुत्र थे। जोधराज के नाना धरमदास और मामा कल्याण दास के पास लाखों की सम्पत्ति था । दूर-दूर तक उनका व्यापार फैला हुआ था। ऐसे धनसम्पन्न परिवार में जन्म लेने पर भी बचपन से ही जोधराज के हृदय में धर्म की लगन थी। जोधराज ने पं. हरिनाथ मिश्र को अपना मित्र बनाकर उनकी संगति से शास्त्रज्ञान उपलब्ध किया तथा उनसे अपने पढ़ने के लिये कई हस्तलिखित ग्रन्थों की प्रतिलिपियां करवाई। जोधराज गोदीका के ग्रन्थ इस प्रकार हैं: 1. सम्यक्त कौमुदी भाषा (1724), 2. प्रवचनसार भाषा
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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