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________________ 211 शिष्य थे। ये 17वीं शताब्दी के विद्वान् थे। अब तक इनकी आठ रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं जिनके नाम निम्न प्रकार हैं:-- वीरविलास फाग नैमिनाथ रास सीमंधर स्वामी गीत संबोध सत्ताणु जिन प्रांतरा बाहुबलि वेलि जम्बूस्वामी वेलि चित्तनिरोध कथा वीरविलास फाग एक खण्ड काव्य है जिसमें 22 वें तीर्थंकर नैमिनाथ की जीवन घटना का वर्णन किया गया है। फाग में 137 पद्य हैं। जम्बूस्वामी वेलि एक गुजराती मिश्रित राजस्थानी रचना है। जिन प्रांतरा में 24 तीर्थंकरों के समय ग्रादि का वर्णन किया गया है। संबोध सत्ताण एक उपदेशात्मक गीत है जिसमें 57 पद्य हैं। चित्तनिरोधक कथा 15 पद्यों की एक लघु कृति है इसमें भ. वीरचन्द्र को 'लाड नीति शृंगार' लिखा है। नेमिकुमार रास की रचना सं. 1673 में समाप्त हुई थी यह भी नेमिनाथ की वैवाहिक घटना पर आधारित एक लघु कृति के 1673 में सवारचन्द्र (22) सन्त सुमतिकीर्तिः-- सुमतिकीर्ति भट्टारकीय परम्परा के विद्वान् थे। एक भट्टारक विरुदावली में सुमतिकीर्ति को सिद्धांतवेदि एवं निग्रेन्थाचार्य इन दो विशेषणों से संबोधित किया है। ये राजस्थ के अच्छे विद्वान् थे। अब तक इनकी निम्न रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं:-- धर्मपरीक्षा रास जिनवरस्वामी वीनती जिह्वादन्त विवाद बसन्त विद्या विलास शीतलनाथ गीत पद धर्मपरीक्षा रास इनकी सबसे बड़ी रचना है जिसे इन्होंने संवत् 1625 में समाप्त की थी। (23) टीकम:-- टीकम 18वीं शताब्दी के प्रथम चरण के कवि थे। ये ढंढाड प्रदेश के कालख ग्राम के निवासी थे। इन्होंने संवत् 1712 में चतुर्दशी चौपई की रचना इसी ग्राम के जिन मन्दिर में समाप्त की थी । (24) खडगसेन (संवत् 1713):-- खड्गसेन का जन्म स्थान नारनौल था जो बागड देश में स्थित था। ये मानूशाह के पौत्र एवं लणराज के पूत्र थे। इनको शिक्षा आगरा में चतुरभज वैरागी के पास हई तथा लाहोर नगर में सम्राट शाहजहां के शासन काल में संवत 1713 में त्रिलोकदर्पण कथा की रचना समाप्त की। रचना दोहा चौपई छन्द में निबद्ध है तथा तीन लोक का वर्णन करने वाली है। कवि ने कृति के अन्त में अपना विस्तृत परिचय दिया है। (25) दिलाराम: ___कवि के पूर्वज खंडेले के पहल गांव के रहने वाले थे। किन्तु बूंदी नरेश के अनुरोध से ये सपरिवार बूंदी आकर रहने लगे थे और वहीं इनकी 6 पीढ़ियां गुजर गयी थीं। इसके
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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