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________________ 201 और अपने काव्यों में भी उसने मानव के असद गुणों पर सद्गुणों की विजय बतलायी है। मयणजज्झ में कामदेव पर विजय प्राप्ति का जो चित्र उपस्थित किया है वह बड़ा ही आकर्षक है। इसी तरह उसने सन्तोष तिलक जयमाल में सन्तोष की लोभ पर जो विजय बताई है वह अपने दष्टि का अकेला काव्य है और अपनी चेतन पुद्गल धमाल में जो जड़ और चेतन का द्वन्द बतलाया है तथा जन्म जन्मान्तरों से चले आ रहे संघर्ष को जिन शब्दों में उपस्थित किया है वह कवि के काव्यत्व शक्ति एवं काव्य प्रतिभा का परिचायक है। चेतन और जड़ का संवाद बहत ही सुन्दर रीति से प्रस्तुत किया गया है। ब्रह्म बूचराज की अब तक निम्न रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं: मयणजुज्झ ( टंडाणा गीत विजयकीर्ति गीत संतोष तिलक जयमाल नेमिनाथ वसंतु पद चेतन पुद्गल धमाल नेमीश्वर का बारहमासा (9) ब्रह्म यशोधर (संवत् 1520-90): ब्रह्म यशोधर काष्ठासंघ में होने वाले भ. सोमकीर्ति के प्रशिष्य एवं विजयसेन के शिष्य थे। ये महाव्रती थे। इनका विहार स्थान राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश रहा। विभिन्न उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर इनका समय संवत् 1520 से 1590 तक माना जा सकता है। इनकी अब तक निम्न कृतियां प्राप्त हो चुकी हैं : मल्लिनाथ गीत . नेमिनाथ गीत (सं. 1581) नेमिनाथ गीत नेमिनाथ गीत बलिभद्र चौपई ब्रह्म यशोधर की काव्य शैली परिमार्जित है। वे किसी भी विषय को सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में सक्षम थे। उन्होंने नेमिनाथ पर तीन गीत लिखे लेकिन तीनों ही गीतों में अपनीअपनी विशेषताएं हैं। बलिभद्र चौपई इनकी सबसे अच्छी काव्य कृति है। यह श्रीकृष्ण एवं बलराम के सहोदर प्रेम की एक उत्तम कृति है। यह लघु काव्य है। निखरी हुई भाषा में निबद्ध यह काव्य राजस्थानी भाषा की उत्तम कृति है। अभी इनकी और भी कृतियां मिलने की संभावना है। (10) भट्टारक शुभचन्द्र: भट्टारक शुभचन्द्र भ. विजयकीर्ति के शिष्य थे। संवत् 1530 के पास पास इनका जन्म हुप्रा और बाल्यकाल में ही इनका भट्टारकों से सम्पर्क हो गया। संवत् 1573 में ये भद्रारक बने और इस पद पर संवत 1613 तक बने रहे। इन्होंने देश के विभिन्न भागों में विहार किया और जीवन पर्यन्त सत् साहित्य का प्रचार करने में लगे रहे। इन्होंने ग्रंथों का भारी अध्ययन किया और जनता द्वारा ये षटभाषा चक्रवर्ति कहलाए जाने लगे। अब तक इनकी 24 संस्कृत रचनायें एवं 7 राजस्थानी रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं। राजस्थानी रचनाओं के नाम निम्न प्रकार हैं: महावीर छन्द नेमिनाथ छन्द गीत मादि। विजयकीर्ति छन्द दान छन्द गुरुछन्द तत्वसार दूहा
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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