SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करने के लिए गीतात्मक शैली अपनायी है। कवि ने प्रत्येक विषय का सूक्ष्म वर्णन किया है भाषा एवं शैली की दृष्टि से सभी रचनायें ठीक हैं। (6) प्राचार्य सोमकीति : प्राचार्य सोमकीर्ति 15वीं शताब्दी के उभट विद्वान प्रमुख साहित्य सेवी एवं उत्कृष्ट जैन संत थे। वे स्वाध्याय करते, साहित्य सजन करते और लोगों को उसकी महत्ता बतलाते। वे संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी एवं गजराती भाषा के प्रसिद्ध विद्वान थे। प्राचार्य सोमकीति काष्ठासंघ के नन्दीतट शाखा के सन्त थे। संवत 1518 में रचित एक ऐतिहासिक पट्टावली में उन्होंने अपने आपको काष्ठासंघ का 7वां भद्रारक लिखा है। राजस्थानी भाषा में अब तक इनकी 6 रचनायें उपलब्ध हो चकी हैं। इनके नाम निम्न प्रकार हैं :---- गुर्वावली मल्लिनाथ गीत यशोधर रास आदिनाथ विनती रिषभनाथ स्तुति नेपन क्रियागीत मुर्वावली संस्कृत एवं राजस्थानी मिश्रित रचना है। इस कृति के आधार पर संवत् 1518 में रचित राजस्थानी गद्य का नमना देखा जा सकता है। यशोधर रास कवि की सबसे बड़ी रचना है। इसे उसने संवत् 1536 में लिखा था। ऋतुओं, पेड़-पत्तों एवं प्राकृतिक दृश्यों का इस काव्य में अच्छा वर्णन हसा है। शेष सभी कृतियां सामान्य हैं। ज्ञानभूषण : भटारक जानभषण विक्रम की 16वीं शताब्दी के विदान थे। ये भ. भवनकीति के शिष्य थे। ये संवत् 1530-31 में किसी समय भदारक गादी पर बैठे और 1560 के पूर्व तक भट्टारक रहे। ये संस्कृत, प्राकृत, गुजराती एवं राजस्थानी के प्रमुख विद्वान थे। अब तक इनके 10 संस्कृत ग्रन्थ एवं 5 राजस्थानी भाषा में निबद्ध ग्रंथ मिल चुके हैं। राजस्थानी कृतियों के नाम निम्न प्रकार हैं : पोसह रास मादीश्वर फाग षट् कर्म रास जल गालण रास नागद्रा रास प्रादीश्वर फाग राजस्थानी भाषा की अच्छी कृति है। फाग संज्ञक काव्यों में इसका विशिष्ट स्थान है। यह कृति भी संस्कृत एवं राजस्थानी भाषा में निबद्ध है। इसमें दोनों भाषामों के 501 पद्य हैं जिनमें 262 राजस्थानी और शेष 239 संस्कृत पद्य हैं। कवि की अन्य सभी रचनायें भी भाषा, विषय वर्णन एवं छन्दों की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। शानभूषण ने राजस्थानी भाषा के विकास में जो योगदान दिया वह सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। (8) ब्रह्म बूचराज : राजस्थानी भाषा में रूपक काव्यों के निर्माता की दृष्टि से ब्रह्म बुचराज का उल्लेखनीय स्थान है। इनकी रचनाओं के आधार पर इनका समय संवत् 1530 से 1600 तक का माना जा सकता है। मयणजुज्झ इनकी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना रही जिसकी कितनी ही पाण्डुलिपियां राजस्थान के विभिन्न भण्डारों में उपलब्ध होती हैं। कवि पूर्णतः प्राध्यात्मिक थे
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy