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________________ 208 इनकी भी सभी रचनायें लघु हैं। तत्वसार दुहा में 91 छन्द हैं जो जैन सिद्धांतों पर प्राधारित हैं। इनकी भाषा संस्कृत-निष्ठ है। कितने ही शब्दों का अनुस्वार सहित ज्यों का त्यों प्रयोग कर लिया गया है। सभी रचनायें मौलिक एवं पठनीय हैं। (11) ब्रह्म जयसागरः ब्रह्म जयसागर भ. रत्नकीर्ति के प्रमुख शिष्यों में से थे। इनका समय संवत् 1580 से 1665 तक का माना जा सकता है। इनकी निम्न रचनायें महत्वपूर्ण हैं:--- पंचकल्याणक गीत नेमिनाथ गीत चुनडी गीत क्षेत्रपाल गीत जसोधर गीत संघपति मल्लिदासजी गीत शीतलनाथ नी वीनती पंचकल्याणक गीत कवि की सबसे बड़ी कृति है। इसमें 70 पद्य हैं। राजस्थानी भाषा में लिखे गये ये सभी गीत अत्यधिक लोकप्रिय रहे हैं। चुनडी गीत एक रूपक गीत है। इसमें नेमिनाथ के वन चले जाने पर उन्होंने अपने चरिव रूपी चुनडी को किस रूप में धारण किया इसका संक्षिप्त वर्णन है । (12) आचार्य चन्द्रकीर्तिः प्राचार्य चन्द्रकीर्ति 17वीं शताब्दी के विद्वान थे। ये भ. रत्नकीर्ति के शिष्य थे। कांकरोली, डंगरपूर, सागवाड़ा आदि नगर इनके साहित्य निर्माण के केन्द्र थे। 'सोलहकारणरास, जयकुमाराख्यान, चारित्न चूनडी, चोरासी लाख जीव योनि बीनती' ये चार रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं। सोलहकारण रास एक लघु कृति है जिसमें 46 पद्य हैं। उसे भडौच (गुजरात) के शान्तिनाथ मन्दिर में रची गई थी। जयकुमाराख्यान 4 सर्गों में विभक्त एक खण्ड काव्य है जिसमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र सम्राट भरत के सेनाध्यक्ष का भव्य जीवन-चरित्र वर्णित है। प्राख्यान वीर रस प्रधान है। इसकी रचना बारडोली नगर के चन्द्रप्रभ चैत्यालय में संवत 1655 की चैत्र शुक्ला दशमी के दिन समाप्त हुई थी। शेष दोनों ही कृतियां लघु कृतियां (13) मुनि महनन्दिः -- मनि महनन्दि भ. वीरचन्द्र के शिष्य थे। इनको एक मात्र कृति बारक्खरी दोहा उपलब्ध होती है। इस कृति का दूसरा नाम दोहा पाहुड भी है। इसमें विविध विषयों का वर्णन दिया हुमा है जिनमें उपदेशात्मक, आध्यात्मिक एवं नीति परक दोहे प्रमुख रूप से हैं। (14) ब्रह्म रायमल्ल:-- ब्रह्म रायमल्ल 17वीं शताब्दी के विद्वान् थे। राजस्थानी भाषा के विद्वान् सन्तों में इनका उल्लेखनीय स्थान है। ये मुनि अनन्तकीर्ति के शिष्य थे। ये राजस्थान के विभिन्न नगरों में विहार किया करते थे तथा वहीं पर श्रावकों के प्राग्रह से नवीन कृतियां निबद्ध करते रहते थे।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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