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________________ 102 पौर कलापूर्ण बन पड़े हैं। कहीं-कहीं अनुभूतियों की तीव्रता और कविता में उतर आई कवि की संवेदनशीलता हृदय को झकझोर देती है। हालिम चरित्र:-- इस प्रबन्ध काव्य में तेरापंथ के सप्तम प्राचार्यश्री डालगणी के गरिमामय व्यक्तित्व की विस्तृत झांकी प्रस्तुत की है आचार्यश्री तुलसी ने सरल भाषा और आकर्षक शैली में। काव्यनायक का व्यक्तित्व स्वतः स्फर्त था और नेतृत्व सक्षम । उनकी वरिष्ठता का प्रमाण है, संघ के द्वारा प्राचार्य पद के लिये उनका निर्विरोध चुनाव । प्राचार्य चरितावली की पूरक कड़ियां: तेरापन्थ के पांच पूर्वाचार्यों का यशस्वी जीवन चरित्र 'प्राचार्य चरितावली' नामक ग्रंथके दो खण्डों में प्रकाशित है जो तेरापन्थ की सन्त परम्परा के विभिन्न कवियों द्वारा अपनीअपनी शैली और अपने-अपने ढंग से प्रणीत है। । इन कृतियों का भी राजस्थानी पद्य-साहित्य परम्परा में गौरवपूर्ण स्थान है। अपने पूर्वाचार्यों का प्रामाणिक जीवन वृत्त लिखकर तेरापन्थ संघ ने साहित्य-जगत् को अपनी मौलिक देन दी है। पश्चातवर्ती तीन प्राचार्यों के जीवन-वत्त अलिखित थे, प्राचार्यश्री की चमत्कारी काव्य प्रतिभा का योग मिला, उस कमी की पूर्ति हई। 'माणक महिमा, डालम चरित्र और काल यशोविलास' ये तीनों काव्य कृतियां प्राचार्य चरितावली की अधूरी श्रृंखला की पूरक कड़ियां बन गई हैं। मगन चरित:-- मगन चरित्र आचार्यश्री तुलसी का राजस्थानी गेय काव्य है, जिसमें एक ऐसे महामना व्यक्ति की जीवन-गाथा कविता के कमनीय स्वरों में मुखर हुई है, जिसने तेरापन्थ के पांच-पांच प्राचार्यों के विभिन्न युगों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और आचार्यश्री ने उनकी विरलतामों का मूल्यांकन कर उन्हें मन्त्री पद से समलंकृत किया था। वे थे शासन-स्तम्भ मुनि श्री मगनलाल जी स्वामी जिनकी विभिन्न भूमिकाओं का संक्षिप्त चित्र प्रस्तुत है कवि के शब्दों में मधवा मान्यों, माणक जान्यो, सम्मान्यो गणि डाल । कालू अपनो अंग पिछाण्यो, तुलसी मानी ढाल ॥ तेरापन्थ के साधु-साध्वियों ने भी राजस्थानी भाषा में बहुत कुछ लिखा है। उनका मीति साहित्य और पाख्यान साहित्य राजस्थान के पद्यात्मक वाङमय में अपना विशिष्ट स्थान रखता है और लोक-जीवन को प्रभावित करने में वह काफी सफल रहा है।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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