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(28) मिश्रीमल:
'मरुधर केसरी' नाम से प्रसिद्ध मनि श्री मिश्रीमल जी म. का जन्म सं. 1955 में श्रावण शुक्ला चतुर्दशी को पाली में हुआ। इनके पिता का नाम श्री शेषमल जी सोलंकी तथा माता का केसर कुंवर था। संवत् 1975 में इन्होंने मुनि श्री बुधमल जी के पास दीक्षा अंगीकृत की। इनका राजस्थानी और हिन्दी दोनों भाषाओं पर समान रूप से अधिकार है। अब तक ये 100 से भी अधिक ग्रंथों का प्रणयन कर चुके हैं जिनमें विशालकाय 'पांडव यशोरासायन' (महाभारत) विशेष महत्वपूर्ण है। यह 309 ढालों में विभक्त है। भजनों की संख्या तो हजारों तक पहंच चुकी है। 'मरुधर केसरी ग्रंथावली'l भाग 1, 2 में इनका प्रकाशन हया है। इनके काव्य में एक अोर संत कवि का रूढ परम्पराओं के प्रति विद्रोह और भक्त कवि का अपने आराध्य के प्रति समर्पण भाव है, वहीं दूसरी ओर चमत्कार प्रिय कवि का बौद्धिक विलास और कथाकार का चरित्न-निरूपण भी है। इनकी सम्पूर्ण काव्य चेतना लोकजीवन से रस-ग्रहण करती है। 'मधुर दृष्टांत मंजूषा' इस दृष्टि से कवि के लोक अनुभवों का संचित कोष है।
(ब) श्रावक कवि:
विनयचन्दः--
इनका जन्म जोधपुर-भोपालगढ़ के बीच एक छोटे से गांव देईकडा में हुआ। इनके पिता का नाम गोकुल चन्द कुंभट था। ये प्राचार्य श्री हम्मीरमल जी के निष्ठावान श्रावक थे और प्रज्ञाघर थे। इनकी 'विनयचन्द्र चौबीसी' अत्यन्त प्रसिद्ध रचना है जिसे कवि ने संवत् 1906 में पूरी की थी। इनमें 24 तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। इसीलिये इसे चौबीसी कहा गया है। भावों को सरसता, कमनीयता एवं आध्यात्मिकता के कारण इनका एक-एक पद भक्तों को भाव-विह्यल एवं आत्मविभोर बना देता है। आज भी भक्त लोग इनके पदों को सस्वर गाते हुये मुग्ध और तन्मय बन जाते हैं। प्राचार्य श्री जवाहरलाल जी म. इनके पदों से ही प्रवचन प्रारम्भ किया करते थे। इनकी दूसरी प्रसिद्ध कृति 'आत्मनिन्दा' है। यह रचना भी अत्यन्त प्रभावोत्पादक है। इसमें प्रात्मा की उसके किये हये कलुषित कर्मों के लिये भर्त्सना की गई है। पूर्वकृत पापों को पश्चाताप की अग्नि से धो डालने का यह विधान साधक को प्रात्मोन्नति की ओर अग्रसर करता है। कवि ने हिंसा, झठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह प्रादि पापों की निन्दा करते हये चेतन को प्रात्मस्वभाव में रमण करने की प्रेरणा दी है। तीसरी कृति ‘पट्टावली' है जिसमें ऐतिहासिक दृष्टि से कवि ने भगवान महावीर से लेकर अपनी गुरु-परम्परा तक का उल्लेख किया है। इनकी एक अन्य रचना 'पूज्य हमीर चरित ' भी है।
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जेठमल:
इनका जन्म जयपुर के प्रतिष्ठित जौहरी परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम भूधर जी चोरडिया और माता का लक्ष्मी देवी था। ये सहृदय और गायक कवि थे। इनकी 'जम्बू गुण रत्नमाला' प्रसिद्ध काव्य कृति है जिसकी रचना संवत् 1920 में की गई। इस कृति का समाज में बडा प्रचार है। साधु लोग भी अपने व्याख्यानों में इसे गा-गा कर सुनाते हैं। विभिन्न
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1. प्रकाशक-मरुधर केसरी साहित्य प्रकाशन समिति, जोधपुर-व्यावर। 2. विशेष के लिये देखिये 'मरुधर केसरी अभिनन्दन ग्रंथ' में प्रकाशित डा. नरेन्द्र भानावत
का लेखे 'मरुधर केसरी की काव्यकला', पृ. 34-52। ३. प्रकाशक-सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल, जयपुर ।