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________________ 198 लोकमान्य तिलक, महामना मालवीय, सरदार पटेल भादि राष्ट्रीय महापुरुष इनके सम्पर्क में भाये। इनकी उपदेश-शैली बड़ी रोचक, प्रेरक और विचारोत्तेजक थी। इनके प्रवचनों का प्रकाशन 'जवाहर किरणावली" नाम से कई भागों में किया गया है । 'अनुकम्पा विचार' नाम से इनके राजस्थानी काव्य के दो भाग प्रकाशित हुये हैं । इनमें अहिंसा के विधेयात्मक स्वरूप पर बल देते हुये दया और दान की धार्मिक संदर्भ में विशेष महत्ता प्रतिपादित की है। रागरागिनियों और ढालों में निबद्ध यह काव्य सरस और रोचक बन पड़ा है । (26) चौथमल : जैन दिवाकर प्रसिद्ध वक्ता के रूप में प्रसिद्ध इन चौथमलजी म. का जन्म सं. 1934 में कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी को नीमच में हुआ । इनके पिता का नाम श्री गंगारामजी और माता का केसरां बाई था । सं. 1952 में इन्होंने श्री हीरालाल जी म. सा. से दीक्षा अंगीकृत की । ये जैन तत्व और साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान् होने के साथ-साथ प्रभावशाली वक्ता, मधुरगायक और प्रतिभा सम्पन्न कवि थे । इनके विचार बड़े उदार और दृष्टि व्यापक थी । जैन धार्मिक तत्वों को संकीर्ण दायरे से उठा कर सर्वं साधारण में प्रचारित-प्रसारित करने क इन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया । इनकी प्रवचन सभा में राजा-महाराजा और सेठ साहूकारों से लेकर चमार, खटीक, भील, मीणें आदि पिछड़े वर्ग के लोग भी समान रूप से सम्मिलित होते थे । इनके उपदेशों से प्रभावित होकर अनेकों ने प्राजीवन मांसभक्षण, मदिरा-पान, भांग-गांजा, तम्बाखू आदि का त्याग किया। मेवाड़, मालवा एवं मारवाड़ के अनेक जागीरदारों और राजा-महाराजाओं ने इनसे जीव दया का उपदेश सुनकर अपने-अपने राज्यों में हिंसाबन्दी की स्थायी आज्ञायें जारी करवा दीं और उन्हें इस आशय की सनदें लिख दीं । उदयपुर के महाराणा फतहसिंह जी और भोपालसिंह जी इनके अनन्य भक्त थे । इनका गद्य और पद्य दोनों पर समान अधिकार था । इन्होंने सैकड़ों भक्ति रस से परिपूर्ण भजन लिखे हैं, जिन्हें भक्तजन आत्मविभोर होकर गाते हैं । काव्य के क्षेत्र में 'आदर्श रामायण' और 'आदर्श महाभारत' इनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं । जैन सुबोध गुटका भाग 1, 2 में इनके लगभग 1000 पद संग्रहीत हैं । इन्होंने राजस्थानी और हिन्दी दोनों भाषाओं में समान अधिकार के साथ काव्य-रचना की है । इनके प्रवचन 'दिवाकर दिव्य ज्योति" नाम से 21 भागों में प्रकाशित हुये हैं । इनके द्वारा संग्रहीत मोर अनुवादित 'निर्गन्ध प्रवचन अत्यन्त लोकप्रिय ग्रंथ हैं । इसमें जैनागमों के आधार पर जैन दर्शन और धर्म संबंधी महत्वपूर्ण गाथानों का संकलन किया गया है । ( 27 ) चौथमल : - प्राचार्य जयमल्ल जी म. की परम्परा से संबद्ध इन चौथमल जी का जन्म संवत् 1947 में कुचेरा के पास फीरोजपुरा ( मारवाड़) गांव में हुना । इनके पिता का नाम हरचन्दराय और माता का कुंवरादे जी था। इन्होंने संवत् 1959 में बैशाख कृष्णा सप्तमी को सेठां री रीया श्री नथमलजी म. से दीक्षा अंगीकृत की। संवत् 2008 में इनका निधन हुआ । ये कई भाषाओं के ज्ञाता और राजस्थानी के आशु कवि थे । अपनी परम्परा के आचार्यों श्रोर सन्तों की महत्वपूर्ण जीवन घटनाओं को इन्होंने पद्यबद्ध किया जिनका ऐतिहासिक महत्व है । पूज्य गुणमाला 5 में इनकी ऐसी रचनायें संग्रहीत हैं । इन्होंने कई चरित काव्य भी लिखे हैं जिनका प्रकाशन 'व्याख्यान नव रत्नमाला' भाग 1, 2 में हुआ है । 1. सं. पं. शोभाचन्द्र भारिल्ल, प्र. श्री जवाहर साहित्य समिति, भीनासर, (बीकानेर) । प्रकाशक - श्री जैनोदय पुस्तक प्रकाशन समिति, रतलाम । 2. 3. सं. पं. शोभाचन्द्र भारिल्ल, प्र. श्री दिवाकर दिव्य ज्योति कार्यालय, ब्यावर । 4. प्र. श्री दिवाकर दिव्य ज्योति कार्यालय, ब्यावर । 5. प्रकाशक - श्री मनगट परिवार भंडारा (महाराष्ट्र ) ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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