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________________ 19 2 ये अलवर नरेश श्री जयसिंह जी ने संवत्सरी महापर्व के दिन हमेशा के लिये प्रगता रखाया । सुमधुर गायक और प्रतिभाशाली कवि थे । इनकी कविताओं का एक संकलन 'खूब कवितावली" नाम से प्रकाशित हुआ है जिसमें स्तवन, उपदेशामृत, चरितावली और विविध विषयों से सम्बद्ध कविताएं संगृहीत हैं । इन्होंने विविध राग-रागिनियों, दोहा, कवित-सवैया, ढाल आदि छन्दों के साथ-साथ ख्यालों में प्रयुक्त शेर, चलत, मिलत, छोटी कड़ी झेला, द्रोण जैसे छन्दों का भी प्रयोग किया है । इनकी कविताओं में लोक जीवन और लोक संस्कृति की अच्छी अभिव्यक्ति हुई है । ( 24 ) अमी ऋषि : इनका जन्म संवत् 1930 में दलोद ( मालवा ) में हुआ । इनके पिता का नाम श्री भेरूलाल जी और माता का प्यारा बाई था। संवत् 1943 में इन्होंने श्री सुखा ऋषि जी म. के पास मगरदा (भोपाल) में दीक्षा अंगीकृत की। संवत् 1988 में शुजालपुर में इनका स्वर्गवास हुआ । मालवा, मेवाड़, मारवाड़ गुजरात, महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों में विहार कर इन्होंने जिन शासन का उद्योत किया । इनकी बुद्धि और धारणा शक्ति अत्यन्त तीव्र थी । शास्त्रीय और दार्शनिक चर्चा में इनकी विशेष रुचि थी । ये जितने तत्वज्ञ थे उतने ही कुशल कवि भी । इन्होंने लगभग 23 ग्रंथों की रचना की । इनकी कविताओं का एक संग्रह 'अमृत काव्य संग्रह " के नाम से प्रकाशित हुआ है । इन्होंने अनेक छन्दों और अनेक शैलियों में रचना की है। छन्दों में दोहा, कवित्त, सवैया, सोरठा, पद्धरी, हरिगीतिका, शिखरिणी, शार्दूलविक्रीडित, मालिनी, प्रादि छन्दों का सुचारु निर्वाह हुआ है । सवैया और कवित्त पर तो उनका विशेष अधिकार जान पड़ता है । रूप-भेद की दृष्टि से जहां इन्होंने अष्टक, चालीसा, बावनी, शतक आदि संज्ञक काव्य लिखे हैं वहां चरित्र काव्यों में सीता चरित, जिन सुन्दरी, भरत बाहुबलि चौढालिया, म्बड सन्यासी चौढालिया, कीर्ति ध्वज राजा चौढालिया, धारदेव चरित प्रादि मुख्य हैं । इनकी कविता में जहां निश्छलता, स्पष्टोक्ति है, वहीं चमत्कारप्रियता भी है । इस दृष्टि से इन्होंने खडगबंध, कपाटबंध, कदली बंध, मेरु बंध, कमल बंध, चमर बंध, एकाक्षर त्रिपदी बंध, चटाई बंध, छत्र बंध, धनुर्बन्ध, नागपाश बंध, कटारबंध, चौपड़ बंध, स्वस्तिक बंध आदि अनेक चित्रकाव्यों की रचना की है । 'जयकुंजर' इस दृष्टि से इनकी श्रेष्ठ रचना है । लोकजीवन की निश्छल अभिव्यक्ति इनके काव्य की विशेषता है । पंचतंत्र में ग्राई हुई कई कहानियों को लेकर इन्होंने सवैया छंद में उन्हें निबद्ध किया है । पूर्ति में भी इन्हें पर्याप्त सफलता मिली है । ( 25 ) जवाहरलाल इनका जन्म संवत् 1932 में कार्तिक शुक्ला चतुर्थी को थांदला ( मालवा ) गांव में हुआ । इनके पिता का नाम जीवराज जी और माता का नाथी बाई था । 16 वर्ष की लघुवय में संवत् 1948 में मार्गशीर्ष शुक्ला द्वितीया को इन्होंने मुनि श्री मगनलाल जी म. सा. के चरणों में दीक्षा अंगीकृत की। संवत् 1977 प्राषाढ़ शुक्ला तृतीया को ये प्राचार्य श्री श्रीलाल जी म. सा. के बाद आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुये । संवत् 2000 आषाढ़ शुक्ला अष्टमी को भीनासर में इनका स्वर्गवास हुआ । इनका व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक व प्रभावशाली था । इन्होंने राष्ट्रीय स्वतन्त्रता प्रान्दोलन के सत्याग्रह, अहिंसक प्रतिरोध, स्वदेशी वस्तुनों का प्रयोग, खादी धारण, अछूतोद्धार जैसे रचनात्मक कार्यक्रमों में सहयोग देने की जनमानस को विशेष प्रेरणा दी । src ओजस्वी व्यक्तित्व और क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित होकर महात्मा गांधी, 1. सं. पं. मुनि श्री हीरालालजी म., प्रकाशक - श्री सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा । 2. प्रकाशक - श्री रत्न जैन पुस्तकालय पाथर्डी (अहमदनगर) ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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