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(20) दीपचन्द :
इनका जन्म संवत् 1926 में आश्विन शुक्ला छठ को पंजाब के फिरोजपुर क्षेत्र के अन्तर्गत झंबो नामक गांव में हा। इनके पिता का नाम बधावासिंह और माता का नाम नारायणीदेवी था। इन्होंने संवत 1951 में मार्गशीर्ष शुक्ला तृतीया को दिल्ली में पूज्य श्री धर्मदास जी महाराज की परम्परा के जीवनरामजी म. के पास अपनी धर्मपत्नी सहित 25 वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण की। संवत् 1994 में थी जीवनरामजी म. ने इन्हें सोनीपत में पज्य पदवी प्रदान की। ये ग्रादर्श तपस्वी संत और प्राध्यात्मिक कवि थे। इनके पदों में संसार की नश्वरता, आत्मा की अमरता का सुन्दर निरूपण है। इनकी भाषा राजस्थानी प्रभावित रिली 'दीप भजनावली' नाम से इनकी रचनाओं का एक संग्रह प्रकाशित हुया है।
(21) गजमल :
इनका जन्म किशनगढ के फतेहगढ़ नामक गांव में हपा। इनके पिता का नाम कल्याण मल जी ललवाणो तथा माता का नाम केसर बाई था। संवत् 1926 में चैत्र शक्ला चतुर्दशी को उन्होंने अपनी माता के साथ पूज्य नानकराम जी महाराज के सम्प्रदाय के मनि श्री मगनमलजी के पास दीक्षा अंगीकृत की। संवत् 1975 में फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी को ठाठोठी ग्राम में इनका निधन हना। ये अध्ययनशील प्रवृत्ति के तत्ववादी साधक थे। घंटों तात्विक विषयों पर चर्चा किया करते थे। इन्होंने छोटी-मोटी कई रचनायें लिखी हैं उनमें सबसे उल्लेखनीय रचना 'धर्मसेन' ग्रंथ है जो छह खंड एवं 64 ढालों में पूरा हा है। ग्रंथ प्रमाण 6500 श्लोक हैं।
(22) माधव मुनिः
इनका जन्म संवत् 1928 में भरतपुर के निकट अचनेरा गांव में हुआ। इनके पिता का नाम बंशीधर सनाढ्य और माता का राय कंबर था। संवत् 1940 में इन्होंने मगन मनिजी के पास दीक्षा अंगीकृत की। संवत् 1978 में वैशाख शुक्ला पंचमी को ये धर्मदासजी महाराज की परम्परा में प्राचार्य श्री नंदलालजी म. के बाद प्राचार्य बने। संवत 1981 में जयपुर के पास गाडोता गांव में इनका स्वर्गवास हया। जैनागमों में इनकी गहरी पैठ थी। व्याकरण, न्याय, साहित्य प्रादि भारतीय दर्शनों का इनका गहन अध्ययन था। इनमें कवित्व-प्रतिभा के साथ-साथ पैनी तर्कणा शक्ति भी थी। इनके काव्य में चिन्तन की गहराई, अर्थगौरव और सिद्धान्त निष्ठता की दृढ़ता से प्राण प्रतिष्ठा हुई है । इनकी भाषा प्रौढ और अभिव्यक्ति सशक्त है। इनकी रचनाओं का एक संग्रह 'जैन स्तवन तरंगिणी' 1 नाम से प्रकाशित हा है जिसने विनय, भक्ति, और उपदेश की तीव्र तरंगें प्रवहमान हैं।
(23) खूबचन्द :--
इनका जन्म संवत् 1930 में कार्तिक शुक्ला अष्टमी को निम्बाहेडा (मेवाड) में हुआ। इनके पिता का नाम टेकचन्दजी जैतावत और माता का गेंदी बाई था। 22 वर्ष की अवस्था में संवत 1952 में प्राषाढ़ शुक्ला तृतीया को इन्होंने नीमच शहर में नन्दलाल जी म. सा. के चरणों में दीक्षा अंगीकृत की। संवत् 1991 में फाल्गुन शुक्ला तृतीया को रतलाम में ये प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित हए। संवत् 2002 चैत्र शुक्ला तृतीया को इनका स्वर्गवास हया। इनका जीवन बडा ही संयत, तपोमय और त्याग-वैराग्य से परिपूर्ण था। इनकी व्याख्यान शैली बड़ी ही रोचक और प्रोजपूर्ण थी। इनके उपदेशों से प्रभावित होकर जयपुर-नरेश श्री माधोसिंह जी तथा
1. प्रकाशक-श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्री संघ, कोटा।