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________________ 189 हैं जो बड़े ही भावपूर्ण हैं। इनका प्रकाशन 'रत्नज्योति' 1 नाम से दो भागों में हुअा है। पदों के अतिरिक्त इन्होंने चरित काव्य भी लिखे हैं जिनमें सूखानन्द मनोरमा चरित्र अन्य चरित काव्यों में सगर चरित, और इलायची चरित' प्रकाशित हो चुके हैं। इन चरितों में विभिन्न छंदों और राग-रागिनियों का प्रयोग किया गया है । 2 (11) कनीराम :-- इनका जन्म संवत 1859 में माघ शुक्ला एकादशी को खिवसर (जोधपुर) में हमा। इनके पिता का नाम किसनदास जी पूणोत तथा माता का राऊदेवी था। संवत् 1870 में पौष कृष्णा त्रयोदशी को पूज्य दुर्गादासजी म. के शिष्य मुनि श्री दलीचन्द जी से इन्होंने दीक्षा अंगीकृत की। संवत 1936 में माघ शुक्ला पंचमी को पीपाड़ में इनका स्वर्गवास हुआ। ये अत्यन्त सेवा भावी और चर्चावादी संत थे। नागौर, अजमेर, काल, पाली, पीपाड़ तथा पंजाब प्रदेश में इन्होंने कई तात्विक चर्चाओं में भाग लिया। अपने मत की पुष्टि करते समय ये नैतिक मर्यादानों का पूरा ध्यान रखते थे। चर्चावादी होने के कारण ये 'वादीभ केसरी' नाम से प्रसिद्ध थे। इनके औपदेशिक पद तात्विक होते हुए भी बड़े भावप्रवण हैं। अन्य प्रमुख रचनाएं है जम्बकुमार की सज्झाय, तुंगिया के श्रावक की सज्झाय, पडिमा छत्तीसी, सिद्धान्तसार, ब्रह्मबिलास (इसमें 87 ढालें हैं) आदि ।' (12) विनयचन्द्रः-- इनका जन्म संवत् 1897 में आसोज शुक्ला चतुर्दशी को फलौदी (मारवाड़) में हमा। इनके पिता का नाम प्रतापमल जी पुंगलिया तथा माता का रंभाजी था। 16 वर्ष की अवस्था में संवत 1912 में मार्गशीर्ष कृष्णा द्वितीया को अपने लघ भ्राता श्री कस्तुरचन्दजी के साथ ये पूज्य कजोडमलजी म. के पास दीक्षित हुए। संवत् 1937 में ज्येष्ठ कृष्णा पंचमी को अजमेर में ये प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुये। नेत्र ज्योति क्षीण हो जाने से संवत् 1959 से जयपुर में इनका स्थिरवास रहा। संवत 1972 में मार्गशीर्ष कृष्णा द्वादशी को 75 वर्ष की प्राय में जयपुर में ही इनका स्वर्गवास हया। जयपुर में स्थित प्राचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार इन्हीं के नाम पर है। ये बड़े शांत स्वभावी, वात्सल्य प्रेमी, उदार हृदय और विद्वान कवि थे। इनके पद बड़े हृदयस्पर्शी और भावपूर्ण हैं। प्रमुख रचनायें हैं-मुनि अनाथी री सज्झाय, रतनचन्द्र जी म. का गण, अंजना मती को रास , गौतम रास, धन्ना जी की सज्झाय, नंदराय चरित, नेम जी को व्यावलो, मेणरेहा कथा, सुभद्रा सती की चौपाई, उपदेशी सज्झाय, होली रो चौढालियो, नेमनाथ राजमती बारहमासियों आदि । (13) लालचन्द :-- इनका जन्म कातरदा (कोटा) नामक गांव में हुआ। ये कोटा-परम्परा के प्राचार्य श्री दौलतराम जी म. के शिष्य थे। ये कुशल चित्रकार थे। एक बार किसी दिवाल पर सं. श्री श्रीचन्द्रजी म., प्र. श्री रत्नमुनि जैन कालेज, लोहामंडी, आगरा। 2. देखिये-गरुदेव श्री रत्नमनि स्मति ग्रंथ में प्रकाशित डा. नरेन्द्र भानावत का लेखे पूज्य रत्नचन्द्र जी की काब्य साधना, पृ. 317-327। 3. देखिये – प्राचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भंडार ग्रंथ सूची भाग 1, सं. डा. नरेन्द्र भानावत । 4. देखिए-प्रा. वि. ज्ञा, भ. ग्रंथसूची भाग 1, सं. डा. नरेन्द्र भानावत ।।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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