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________________ (8) सबलदासः -- इनका जन्म संवत् 1828 में भाद्रपद शुक्ला द्वादशी को पोकरण में हुआ । इनके पिता का नाम आनन्द राज जी लूणिया और माता का सुन्दर देवी था । इन्होंने 14 वर्ष की अवस्था में संवत् 1842 में मार्गशीर्ष शुक्ला तृतीया को बुचकला ग्राम में श्राचार्य रायचंद जी से दीक्षा अंगीकृत की । श्राचार्य प्रासकरण जी के बाद संवत् 1882 की माघ शुक्ला त्रयोदशी को जोधपुर में ये प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए । संवत् 1903 में बैशाख शुक्ला नवमी को सोजत में इनका स्वर्गवास हुआ । ये अच्छे कवि और मधुर गायक थे । इनकी कई रचनाएं ज्ञान भण्डारों में बिखरी पड़ी हैं । प्रमुख रचनाओं के नाम हैं- आसकरण जी महाराज के गुण, गुरु महिमा स्तवन, जुग मन्दिर स्वामी की सज्झाय, विमलनाथ का स्तवन, कनकरथ राजा नौ चरित, खंदक जी की लावणी, तामली तापस की चौपई, त्रिलोक सुन्दरी नी ढाल, धन्ना बी री चौपी, शंख पोरवली को चरित, उपदेशी ढाल, साधु कर्तव्य की ढाल आदि । 1 ( 9 ) रत्नचन्द्र :-- इनका जन्म संवत् 1834 में वैशाख शुक्ला पंचमी को जोधपुर राज्य के कुड नामक गांव में हुआ । इनके पिता का नाम लालचन्द जी और माता का हीरा देवी था । संवत् 1848 में पूज्य गुमानचन्द जी म. सा. के नेश्राय में इन्होंने दीक्षा अंगीकृत की। ग्राप बड़े प्रभावी संत थे और साध्वाचार की पवित्रता पर विशेष बल देते थे । जोधपुर नरेश मानसिंह जी इनकी विद्वता और काव्यशक्ति से अत्यन्त प्रभावित थे । जोधपुर के राजगुरु कवि लाडूनाथ जी भी इनके सम्पर्क में प्राये थे और वे इनके साधनानिष्ठ कवि-जीवन से विशेष प्रभावित थे । जोधपुर के दीवान लक्ष्मीचन्द जी मूथा इनके अनन्य भक्तों में से थे । में इनका स्वर्गबास हुआ । इन्होंने छोटी-बड़ी अनेक रचनाएं लिखी हैं । एक संग्रह 'श्री रत्नचन्द्र पद मुक्तावली' नाम से प्रकाशित हुआ है। भागों में बांटा गया है- स्तुति, उपदेश और धर्मकथा | स्तुतिपरक पद्यों में तीर्थंकरों, गणधरों, विरहमानों, तथा अन्य साधक पुरुषों की स्तुति की गई है । पदेशिक भाग में पुण्य-पाप, प्रात्मा-परमात्मा, बंध-मोक्षादि भावों का सुन्दर चित्रण किया गया है । धर्म कथा खंड में जीवन को उदात्त बनाने वाली पद्यात्मक कथाएं हैं । इनके पदेशिक पद प्रत्यन्त ही भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी हैं । संवत् 1902 में जोधपुर इनकी रचनाओं का संगृहीत रचनाओं को तीन ( 10 ) रत्नचन्द्र : ये रत्नचन्द्र आचार्य मनोहरदासजी की परम्परा से संबद्ध हैं । इनका जन्म संवत् 1850 भाद्रपद कृष्णा चतुदर्शी को तातीजा ( जयपुर ) नामक गांव में हुआ । इनके पिता का नाम चौधरी गंगाराम जी व माता का सरूपादेवी था । संवत् 1862 भाद्रपद शुक्ला छठ को नारनौल (पटियाला) में श्री मुनि श्री हरजीमल जी के पास ये दीक्षित हुए। संवत् 1921 में बैशाख शुक्ला पूर्णिमा को आगरा में इनका स्वर्गवास हुआ । ये बड़े तार्किक, महान् शास्त्राभ्यासी और गंभीर विद्वान तथा कवि होने पर भी पद लोलुपता से निर्लिप्त और विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे । इनका गद्य और पद्य दोनों पर समान अधिकार था । पद्य रूप में इन्होंने 'जिन स्तुति' 'सती स्तवन', 'संसारवैराग्य', 'बारह भावना परवासा' हैं आदि पर आध्यात्मिक पद लिखे 186 1. इनकी हस्तलिखित प्रतियां ग्रा. वि. ज्ञा. भ. जयपुर में सुरक्षित हैं । 2. t सम्पादक - पं. मुनि श्री लक्ष्मीचन्द जी म., प्रकाशक - सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल, जयपुर ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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