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________________ 198 जयरंग (जैतसी): आपका जन्म नाम जैतसी व दीक्षा का नाम जयरंग था। संवत् 1700 से 1739 तक की आपकी रचनायें मिलती हैं। उनमें अमरसेन वयरसन चौपई, दशवकालिक गीत (1707), कयवन्नारास (1721) आदि के नाम प्रमुख हैं। योगीराज प्रानन्दधन:-- आपका मल नाम लाभानन्द था। आनन्दधन की रचनायें अनभति प्रधान हैं। ये मेड़ते में काफी रहे थे। आपके अधिकांश पद प्राध्यात्मिक परक हैं। उक्त कवियों के अतिरिक्त अभयसोम, महिमोदय, सुमतिरंग, लाभवर्द्धन, राजलाभ, धर्ममन्दिर, उपाध्याय लक्ष्मीवल्लभ, कमलहर्ष, महोपाध्याय धर्मवर्द्धन, कुशलधीर, यशोवर्द्धन, विनयचन्द्र के नाम उल्लेखनीय हैं । कुछ कवियों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है: लब्धिविजय के शिष्य महिमोदय ने संवत 1722 में श्रीपाल रास की रचना की। सुकवि सुमति रंग ने कितने ही आध्यात्मिक ग्रंथों का राजस्थानी में अनुवाद किया। आपकी प्रमुख रचनाओं में ज्ञानकला चौपई, योगशास्त्र चौपई. हरिकैसी संधि, चौबीसजिन सवैय्या आदि उल्लेखनीय हैं। __ लाभवर्द्धन कविवर जिनहर्ष के गुरुभ्राता थे। जन्म नाम बालचन्द था। आप अच्छे कवि थे। अब तक इनकी 11 रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं। जिनमें लीलावती रास (सं. 1728) विक्रम पंचदण्ड चौपई (सं. 1733) 'पापबद्धि चौपई आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्हीं के समान कविवर राजलाभ, धर्ममन्दिर, उपाध्याय लक्ष्मीवल्लभ की साहित्यक सेवायें उल्लेखनीय हैं । महोपाध्याय धर्मवर्द्धन राजस्थानी भाषा के उत्कृष्ट कवियों में से है। जन्म नाम धर्मसी था। आप राजमान्य कवि थे। महाराजा सुजाणसिंह के दिये पत्रों में आपको सादर वंदना लिखी है। श्रेणिक चौपई (1719); अमरसेन वयरसैन चौपई (1724); सुरसुन्दरी रास (1736); शील रास आदि आपकी उल्लेखनीय रचनायें हैं। कुशलधीर वाचक कल्याणलाभ के शिष्य थे। कवि के साथ भाषा टीकाकार भी थे। सं. 1696 में कृष्णवेलि का बालावबोध भावसिंह के आग्रह से लिखा था। शीलवती रास (1722), लीलावती रास (1728), भोज चौपई आदि आपकी प्रमुख रचनायें हैं। यशोवर्द्धन रत्नवल्लभ के शिष्य थे। इनके रत्नहास रास, चन्दनमलयगिरी रास, जम्बूस्वामी रास एवं विद्याविलास रास प्राप्त होते हैं। कविवर विनयचन्द्र महोपाध्याय समयसुन्दर की परम्परा में ज्ञानतिलक के शिष्य थे। आपकी उत्तमकुमार रास, बीसी, चौबीसी, एवं एकादस अंग सज्झाय (1755) तथा शत्रं जय रास (1755) रचनायें मिलती हैं। इसी तरह लक्ष्मीविनय, श्रीमद् देवचन्द्र एवं अमरविजय भी राजस्थानी भाषा के अच्छे कवि थे । अमर विजय की अब तक 25 रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं। जिनमें भावपच्चीसी (1761), मेघकूमार चौढालिया (1774); सूकूमाल चौपई, सुदर्शन चौपई, अक्षरबत्तीसी, उपदेश बत्तीसी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। . __रामविजय दयासिंह के शिष्य थे। आपका जन्म नाम रूपचन्द था। आपकी गद्यपद्य दोनों में रचनायें मिलती हैं। राजस्थानी पद्य रचनाओं में चित्रसेन पद्यावती चौपई, नेमिनाथरासो, प्रोसवाल रास, आबू स्तवन आदि के नाम प्रमुख रूप से लिये जा सकते हैं ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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