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श्रीपाल रास, सं. 1740; रत्नसिंह रास, सं. 1741; श्रीपाल रास संक्षिप्त सं. 1742; अवंती सुकुमाल रास, सं. 1741 राजनगर; उत्तमकुमार रास सं. 1745 पाटण; कुमारप ल रास सं. 1742 पाटण; अमरदत्त मित्रानन्द रास सं. 1749 पाटण; चन्दन मलयागिरी चौपाई सं. 1744 पाटण; हरिश्चन्द्र रास सं. 1744 पाटण ; हरिबलमच्छी रास सं. 174 ; सुदर्शन सेठ रास सं. 1744/अजितसेन कनकावती रास सं. 1751; गणावली रास सं. 1751; महाबल मलयासुन्दरी रास सं. 1751; शव जय महात्म्य रास सं. 1755: सत्यविजय निर्वाण रास सं. 1756; रत्नचड रास सं. 175% अभयकुमार राय
, विभाजन रास सं. 1758; रत्नसार रास सं. 1759; क्यरस्वामी रास सं. 1. सारण; जम्बूस्वामी रास सं. 1760 पाटण; आलिभद्र सहाय सं. 1760 पाटण ; नर्मदासादरीसज्झाय सं. 1710 पाटण; पारामसोभा रास. 1761 पाटण; वसुदेव रास सं. 1762 पाटण ; जसराज बाबनी सं. 1738 पाटण; मेघकुमार चौढालिया पाटण; यशोधर रास सं. 1747 पाटण; श्रीमती रास सं. 1761 पाटण; कनकावती राख., उपमिति भवप्रपंचारास सं. 1745%; ऋषिदत्त रास सं. 174 पाटण; शीलवती रास सं. 1758; रत्नेश्वर रत्नावती रास सं. 1759; चौबीसी (हिन्दी) सं. 1738; वीशी सं. 1745; दस वैकालिक दस गीत सं. 1737; दोहा संग्रह, चौबोली कथा आदि; विविध स्तवन सल्झाय आदि; राजसिंह चरित चौ. सं. 1708; उपदेश छत्तीसी सवैया (हिन्दी) सं. 17133; सर्वया 393; वीसी सं. 1727,गाथा 144;आहार दोष छत्तीसी सं. 1773 गाथा 36; वैराग्य छत्तीसी सं. 1727, गाथा 36; आदिनाथ स्तवन सं. 17383; सम्मेतसिखर यात्रा स्तवन सं. 1744; अभरसेन वयरसेन रास सं. 1744; दीवाली कल्पबालावबोध, सं. 1751: शतं जय यात्रास्तवन सं. 1759; कलावती रास सं. 1759%; पूजा पंचाशिका बालावबोध सं. 1703नेमि चरित्र (शीलोपदेशमाला-शीलतांत्रिक बोध) ।
जिनसमुद्रसूरि:
आपका जन्म श्री श्रीमाल जातीय शाह हरराज की भार्या लखमादेवी की कुक्षि से हुआ । आपका जन्म स्थान एवं संवत् अभी तक अज्ञात है। जैसलमेर भण्डार की एक पट्टावली में लिखा है, कि पागने 31 वर्ष साधु पद पाला, और सं. .713 में प्राचार्य पद प्राप्त किया। आपके गुरु श्री जिनचन्द्ररि थे। आपकी साध अवस्था का नाम महिमसमद्र था जो कि आपकी अनेक रचनायों में पाया जाता है। आपकी रचनायों से पता चलता है कि पापका विहार जैसलमेर के निकटवर्ती सिन्ध प्राप्त एवं जोधपुर राज्य में ही विशेष तौर से हुआ था। सं. 1713 में बेगड़ गच्छ के प्राचार्य जिनचन्द्रसूरि का स्वर्गवास होने पर आपको इनके पट्टधर के रूप में माचार्य पद प्राप्त हमा। सं. 174 को कार्तिक सुदी 15 को वर्द्धनपुर में आप स्वर्ग सिधारे।
आपकी सर्वप्रथम रचना नेमिनाथ फागसं. 162की रचना है तथा अन्तिम कृति सर्वार्थसिद्धि मणिमाला है जो संवत 1740 में पूर्ण हई थी। इसके अतिरिक्त 25 रचनायें और हैं जिनमें वसुदेव चौपई, ऋषिदत्ता चौपई, रुक्मणि चरित्र, गणसुन्दर चौपई, प्रवचन रचनावलि, मनोरथमाला बावना के नाम उल्लेखनीय हैं।
महोपाध्याय लब्धोदयः
ये जिनमाणिग्यसुरि शाखा के विद्वान् एवं जिनरंगनुरि की गद्दी के प्राज्ञावर्ती थे । कवि की प्रथम रचना पदिमनी चरित्र चौपई की रचना संवत 1706 उदयपुर में हई थी। इसके बाद की सभी रचनायें उदयपुर, गोगुन्दा, एवं धुलेवा में रचित है। कवि की अन्य उपलब्ध रचनायों में रत्न चड मणिचूड चीपई, मलयसुन्दरी चौपई, गणावली चौपई है। सभी रचनायें भाषा एवं साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। कवि अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान् सन्त थे।