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राजस्थानी पद्य साहित्यकार 2
-श्री अगरचन्द नाहटा
11वीं शताब्दी की अपभ्रंश रचनाओं में राजस्थानी भाषा के विकास के चिह्न मिलने लगते हैं। कवि धनपाल रचित 'सच्चउरिय महावीर उत्साह ऐसी ही एक रचना है। इसमें केवल 15 पद्य हैं लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से यह अत्यधिक महत्वपूर्ण कृति है। 12वीं शताब्दी में रचित पल्ह कवि की जिनदत्तसूरि स्तुति 10 छप्पय छन्दों की रचना है, इसकी भाषा अपभ्रंश प्रधान है। इसी प्रकार जिनदत्तसूरिजी की स्तुति रूप कई और छप्पय जैसलमेर के ताडपत्रीय भण्डार में संग्रहीत हैं। 13वीं शताब्दी में नागौर में होने वाले देवसूरि नामक विद्वान् आचार्य द्वारा अपने गुरु मुनिचन्द्रसूरि की स्तुति रूप में 25 पद्य अपभ्रंश में रचे हुये मिलते हैं। इन वादिदेवसरि को नमस्कार करके वज्रसेनसूरि ने 'भरतेश्वर बाहुबलि घोर' नामक 45 पद्यों की राजस्थानी कृति निबद्ध की थी। इसमें भगवान् ऋषभदेव के पुत्र भरत और उनके भ्राता बाहुबलि के युद्ध का वर्णन है। शालिभद्रसूरि कृत 'भरतेश्वर बाहुबलि रास' राजस्थानी भाषा की संवतोल्लेख वाली प्रथम रचना है। इसमें 203 पद्य हैं। इन्हीं की दूसरी रचना 'बुद्धिरास' है जो 63 पद्यों में पूर्ण होती है। कवि असगु ने संवत् 1257 में जीवदयारास सहजिगपुर के पार्श्वनाथ जिनालय में निबद्ध किया था। कवि जालौर का निवासी था। जैसलमेर के वहद् ज्ञान भण्डार में संग्रहीत संवत् 1437 में लिखित स्वाध्याय पुस्तिका में एवं 'चन्दनबाला रास' भी उल्लेखनीय है। संवतोल्लेख वाली एक रचना 'जम्बूसामिरास' है जिसे महेन्द्रसूरि के शिष्य धर्म ने संवत् 1266 में बनायी थी। 41 पद्यों की इस रचना में भगवान महावीर के प्रशिष्य जम्बूस्वामी का चरित्न वर्णित है। इन्हीं की दूसरी कृति 'सुभद्रासती चतुष्पादिका' है जो 42 पद्यों की है। 13वीं शताब्दी की अन्य रचनाओं में 'पाबूरास' (संवत् 1289) एवं रेवंतगिरिरास के नाम उल्लेखनीय हैं।
14वीं शताब्दी:
संवत् 1307 में भीमपल्ली (भीलडिया) के महावीर जिनालय की प्रतिष्ठा के समय अभयतिलकगणि ने 21 पद्यों का 'महावीर रास' बनाया। इन्हीं के लघुभ्राता लक्ष्मीतिलक उपाध्याय भी संस्कृत एवं राजस्थानी के अच्छे विद्वान् थे। इन्होंने 'शांतिनाथ देव रास' नामक राजस्थानी काव्य लिखा था। वह एक ऐतिहासिक रास है जिसमें संवत् 1313 में जालोर में उदयसिंह के शासन में शांति जिनालय की प्रतिष्ठा जिनेश्वरसूरि ने की थी, उसका उल्लेख है। संवत् 1332 में जिनप्रबोधसूरि द्वारा रचित 'शालिभद्ररास' 35 पद्यों की एक सुन्दर राजस्थानी रचना है। इसमें राजगृही के समृद्धशाली सेठ शालिभद्र का चरित्र वर्णित है।
रत्नसिंहसूरि के शिष्य विनयचन्द्रसूरि ने संवत् 1338 में 'बारहवत रास' लिखा जिसमें 53 पद्य हैं। संवत् 1341 में जिनप्रबोधसूरि के पट्ट पर जिनचन्द्रसूरि स्थापित हुये। उनके संबंध में हेमभूषणगणि रचित 'युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि चर्चरी' नामक 25 पद्यों की रचना मिली है। संवत् 1363 में प्रज्ञातिलक के समय में रचित 'कच्छुलीरास' की रचना कोरटा
1. भारतीय विद्या-द्वितीय वर्ष, प्रथम अंक ।