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.. महाकवि सिंह:
__ महाकवि सिंह अपभ्रश के प्रकाण्ड विद्वान् थे। इसके अतिरिात वे प्राकृत एवं संस्कृत के भी प्रसिद्ध पंडित थे। इनके पिता रल्हण भी संस्कृत एवं प्राकृत के विद्वान थे। कवि को माता का नाम जिनमती था और कवि ने इन्हीं की प्रेरणा से अपभ्रश भाषा में पज्जण्णचरिउ जैसा सुन्दर काव्य निबद्ध किया था। ये तीन भाई थे जिनमें प्रथम का नाम शुभकर, द्वितीय का गुणप्रवर
और तृतीय का साधारण था। ये तीनों ही धर्मात्मा थे। कवि ने इन सबका वर्णन निम्न प्रकार किया है:
तह पयरउ णिरु उण्णय अमइयमाणु, गुज्जर-कुल-णह-उज्जोय-माणू । जो उहयपवर वाणी-विलासु, एवंविह विउसहो रल्हणासु । तहो पणइणि जिणमइ सुहम सील, सम्मत्तवंत णं धम्मसील । कइ सीउ ताहि गब्भतरंमि, संभविउ कमल जह सुर-सरंमि । जणवच्छल सज्जणु जणिय हरिसु, सुइवंतु तिविह वइराय सरिसु । उप्पण्णु सहोयरु तासु अवर, नामेण सुहंकर गुणहंपवरु । साहारण लघवउ तासू जाउ, धम्माण रत्तु अइदिव्वकाउ ॥
महाकवि सिंह का दूसरा नाम सिद्ध भी मिलता है जिससे यह कल्पना की गयी कि सिंह और सिद्ध एक ही व्यक्ति के नाम थे। पं. परमानन्द जी शास्त्री का अनुमान है कि सिद्ध कवि ने सर्व प्रथम प्रद्युम्न चरित का निर्माण किया और कालवश ग्रन्थ नष्ट होने पर सिंह कवि ने खंडित रूप से प्राप्त इस ग्रन्थ का पूनरुद्धार किया 11 डा. हीरालाल जैन का भी यही विचार 2 और डा. हरिवंश कोछड ने भी इसी तथ्य को स्वीकार किया है ।
रचना स्थान:
कवि सिंह ने पजगणचरिउ की ग्रंथ प्रशस्ति म बहाणवाड नगर का वर्णन किया है और लिखा है कि उस समय वहां रणधोरी या रणधीर का पुत्र बल्लाल था जो अर्णोराज को क्षय करने लिये कालस्वरूप था और जिसका मांडलिक भृत्य गुहिलवंशीय क्षत्रिय मल्लण ब्राह्मणवाड क शासक था। जब कुमारपाल गजरात की गद्दी पर बैठा था तब मालवा का राजा वल्लाल था इसके पश्चात् बल्लाल यशोधवल को दे दिया जिसने वल्लाल को मारा था । कुमारपालक शासन वि. सं. 1199 से 1209 तक रहा अतः बल्लाल की मृत्यु संवत् 1208 से पूर्व हुई होगी इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रद्युम्न चरित की रचना भी 1208 के पूर्व ही हो चुक थी। अतएव सिंह कवि का समय विक्रम की 12 वीं शताब्दी का अन्तिम पाद या 13 वीं शताब्द का प्रथम पाद मानना उचित प्रतीत होता है।
'ब्राह्मणवाड' या 'ब्राह्मवाद' नाम का स्थान बयाना (राजस्थान) के समीप है। व भी पहिले एक प्रसिद्ध नगर था और वहां एक लेख में ब्राह्मणवाद नगरें' इस शब्द का प्रयोग किर है। यदि यह, ब्राह्मवाद वही नगर है जिसका उल्लेख सिंह कवि ने अपनी प्रशस्ति में कि है तो कवि राजस्थानी थे ऐसा कहा जा सकता है। ब्राह्मवाद में आज भी एक जै मन्दिर है जिसमें 15 वीं शताब्दी तक की जिन प्रतिमाएं विराजमान है।
1. महाकवि सिंह और प्रद्युम्न चरित, अनेकान्त वर्ष 8 किरण 10-11 पृ.391 । 2. नागपुर युनिवर्सिटी जनरल, सन 1942, पृ. 82-83 । 3. अपभ्रन्शसाहित्यः डा. हरिवंश कोछड, पृ. 221 ।