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________________ 150 कवि हरिचन्द अपभ्रश में हरिश्चन्द्र नाम के दो कवि हो गए हैं। एक हरिश्चन्द्र अग्रवाल हुए, जिन्होंने अणथमियकहा, दशलक्षणकथा, नारिकेरकथा, पूष्पांजलिकथा और पंचकल्याणक की रचना की थी। दूसरे कवि हरिचन्द राजस्थान के कवि थे। पं. परमानन्द शास्त्री के अनुसार कवि का नाम हल्ल या हरिइंद अथवा हरिचन्द है। कवि का “वडढमाणकव्व" या वर्द्धमानकाव्य विक्रम की पन्द्रहवीं शती की रचना ज्ञात होती है। उसका रचनास्थल राजस्थान है। यह काव्य देवराय के पुत्र संघाधिप होलिवर्म के अनुरोध से रचा गया था। कवि हरिचन्द ने अपने गुरु मुनि पद्मनन्दि का भक्तिपूर्वक स्मरण किया है। कवि के शब्दों में पउमणंदि मुणिणाह गणिदहु चरणसरणगुरु कइ हरिइंदहु । मुनि पद्मनन्दि दि. जैन शासन-संघ के मध्ययुगीन परम प्रभावक भट्टारक थे जो बाद में मुनि अवस्था को प्राप्त हुए थे। ये मन्त्र-तन्त्रवादी भट्टारक थे। इन्होंने अनेक प्रान्तों में ग्राम-ग्राम में विहार कर अनेक धार्मिक, साहित्यिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक लोकोपयोगी कार्यों को सम्पन्न किया था। आप के सम्बन्ध में ऐतिहासिक घटना का उल्लेख मिलता है। ब्रह्म बूचराज ब्रह्म बूचराज या वल्ह मूलतः एक राजस्थानी कवि थे। इनकी रचनाओं में इनके कई नामों का उल्लेख मिलता है-बचा, वल्ह, वील्ह या वल्हव । ये भद्रारक विजयकीर्ति के शिष्य थे । ब्रह्मचारी होने के कारण इन का 'ब्रह्म' विशेषण प्रसिद्ध हो गया। डा. कासलीवाल जी ने इनकी रची हुई आठ रचनाओं का उल्लेख किया है:-मयणजज्झ, संतोषतिलक जयमाल, चेतन-पुद्गल-धमाल, टंडाणा गीत, नेमिनाथ वसतु, नेमीश्वर का बारहमासा, विभिन्न रागों में आठ पद, विजयकीति-गीत । विजयकीति-गीत में गरु भ. विजयकीर्ति की स्तुति का गान किया गया है । इन रचनाओं में से केवल 'मयणजुज्झ' एक अपभ्रंश रचना है । मयणजुज्झ या मदनयद्ध एक रूपक काव्य है । अपभ्रंश में ही महाकवि हरदेव का भी 'मयणजज्झ' काव्य मिलता है जो भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से प्रकाशित हो चुका है । मदनयुद्ध में जिनदेव और कामदेव के युद्ध का वर्णन किया गया है, जिस में अन्ततः कामदेव पराभूत हो जाता है । कवि का वसन्तवर्णन देखिए वज्जउ नीसाण वसंत आयउ छल्लकूदसि खिल्लियं । सुगंध मलय-पवण झुल्लिय अंब कोइल्ल कुल्लियं । रुणझुणिय केवइ कलिय महुवर सुतरपत्तिह छाइयं । गावंति गीय वजंति वीणा तरुणि पाइक आइयं ॥37॥ 1. पं. परमानन्द जैन शास्त्री : जैन ग्रन्थप्रशस्ति- संग्रह, प्रस्तावना, पृ. 86 । 2. पं. परमानन्द जैन शास्त्री : राजस्थान के जैन सन्त मुनि पद्मनन्दी, अनेकान्त, वर्ष 22, कि. 6, पृ. 285 । 3. डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल : राजस्थान के जैन सन्त-व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ. 71।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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