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________________ 148 चुनडीरास के अतिरिक्त 'णिज्झरपंचमीकहारास' और 'पंचकल्लाणरासु' भी मनि विनयचन्द कृत रचनायें उपलब्ध होती है। निर्झरपंचमीकथा रास की रचना त्रिभवनगिरि की तलहटी में बैठकर की थी। इसम निर्झरपंचमी व्रत का माहात्म्य तथा फल बतलाया गया। रचना संक्षिप्त तथा सून्दर है। पंचकल्याणक रास में जैन तीर्थकरों के पांच कल्याणकों की तिथियों का वर्णन किया गया है। रचना-काल तेरहवीं शताब्दी अनुमानित है। कवि ठक्कुर कवि ठक्कुर सोलहवीं शताब्दी के अपभ्रंश तथा हिन्दी भाषा के कवि थे। इन का जन्म स्थान चाटस् (राजस्थान) कहा जाता है। इनकी जाति खण्डेलवाल तथा गोत्र अजमेरा था। इनके पिता का नाम “घेल्ह" था, जो स्वयं एक अच्छे कवि थे। कवि का रचना-काल वि. सं. 1578-1585 कहा गया ह। पं. परमानन्द शास्त्री के अनुसार कवि ने पि. सं. 1578 में ."पारस श्रवण सत्ताइसी” नामक एक रचना बनाई थी, जो ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करती है। कवि ने इसमें आंखों देखा वर्णन किया है। इनके अतिरिक्त जिन चउवीसी, कृपणचरित्र (वि. सं. 1580), पंचेन्द्रियबेलि (वि. सं. 1585) और नेमीश्वर की बेलि आदि रचनायें मी बनाई थीं। परन्तु डा. कासलीवाल ने कवि की उपलब्ध नौ रचनाओं का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है-इनकी एक रचना बुद्धिप्रकाश कुछ समय पूर्व अजमेर के भट्टारकीय शास्त्रभण्डार में उपलब्ध हुई थी। ठक्कुरसी की अब तक 9 रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं, जिनके नाम निम्न प्रकार हैं2-- (1) पार्श्वनाथ शकुनसत्तावीस (वि. सं. 1575), मेघमालाव्रतकथा (वि. सं. 1580), (3) कृपण-चरित्र (वि. सं. 1585), (4) शील बत्तीसी (वि. सं. 1585).( पंचेन्द्रिय बेलि (वि. सं. 1585),(6) गणवेलि, (7) नेमि राजवलि बेलि, (8) सीमन्धरस्तवन, (9) चिन्तामणि जयमाल। इन रचनाओं के अतिरिक्त इन के कुछ पद भी प्राप्त हुये हैं, जो विभिन्न गुटकों में संग्रहीत हैं। हमारी जानकारी के अनुसार उक्त रचनाओं में से "मेघमालाव्रत कथा" और "चिन्तामणि जयमाल" ये दोनों रचनायें अपभ्रश भाषा की हैं। मेघमालाव्रत कथा में 115 कडवक हैं। इसमें मेघमाला व्रत की कथा का संक्षिप्त तथा सरल वर्णन है। यह व्रत भाद्रपद मास में प्रतिपदा से किया जाता है। यह व्रतकथा पं. माल्हा के पुत्र कवि मल्लिदास की प्रेरणा से रची थी। चिन्तामणि जयमाल केवल 11 पद्य हैं। इस में संयम का महत्व बताया गया है। रचना का प्रारम्भ इस प्रकार किया गया है-- पणविवि जिणपासह पूरण आसहु दूरुज्झिय संसार भलु । चिंतामणि जं तहु मणि सुमरंतहु सुणहु जेम संजमह फलु ॥ उक्त विवरण के आधार पर पता लगता है कि कवि का रचना-काल वि. सं. 1575 से लगभग 1590 तक रहा होगा। कवि ठक्कुर अपभ्रश के एक अन्य कवि ठाकुरसी से भिन्न हैं। उनका परिचय निम्नलिखित ह । शाह ठाकुर रचना में इन का नाम शाह ठाकुर मिलता है। अभी तक इन की दो रचनायही उपलब्ध हो सकी हैं। एक अपभ्रंश में निबद्ध है और दूसरी हिन्दी में । “शान्तिनाथ चरित्र" एक --- - -- --- 1. पं. परमानन्द जैन शास्त्रीः जैन ग्रन्थ प्रशस्ति-संग्रह, प्रस्तावना, पृ. सं. 141 । .. डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल: अलभ्य ग्रन्थों की खोज, अनेकान्त में प्रकाशित, वर्ष 16, किरण 4, प. 170-171 ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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