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________________ 147 उल्लेख के अनुसार विजयपाल के उत्तराधिकारी धर्मपाल और धर्मपाल के उत्तराधिकारी अजयपाल हुए । महाबाण प्रशस्ति के अनुसार 1150 ई. में अजयपाल का वहां राज्य था। । परम्परा के अनुसार अजयपाल के पुत्र व उत्तराधिकारी हरपाल थे । महावन में 1170 ई. का हरपाल का शिलालेख भी मिला है2 | हरपाल के पुत्र कोशपाल थे, जो लाख को पितामह थे । कोशपाल के पुत्र यशपाल थे । यशपाल के पुत्र लाहड थे। उनकी भार्या का नाम जिनमती था । उन दोनों के अल्हण, गाहुल, साहुल, सोहण, रयण, मयण, और सतण नाम के सात पुत्र हुये । इनमें से साहुल पं. लाख के पिता थे। इस प्रकार कवि के पूर्वज यदुवंशी राजघराने से संबंधित थे । रचना की प्रशस्ति से स्पष्ट है कि कोसवाल यादववंश के राजा थे और उनका यश चारों ओर फैला हुआ था । कवि के शब्दों में- जायसहोवंस उवरणसिंधु गुणगरुअमाल माणिक्कसिंधु । जायa rरणाहहो कोसवाल जयरसमुद्दिय दिगचक्कवाल || कवि की प्रारम्भिक रचना इसम चन्दन षष्ठी व्रत का कवि की रची हुई तीन रचनाओं का विवरण मिलता है । "चंदणछट्ठी कहा " है जो एक इतिवृत्तात्मक लघुकाय रचना है । माहात्म्य एवं फल वर्णित है । दूसरी "जिनदत्तचरित" वि. सं. 1275 की रचना है। तीसरी " अणुव्रतप्रदीप" का रचना - काल वि. सं. 1313 है। जिनदत्त कथा एक सशक्त रचना है, जिसमें संस्कृत काव्य-रचना की तुलना में प्रकृति का रिलष्ट वर्णन तथा अलंकृत शैली में रूप - वर्णन आदि चित्रबद्ध रूपों में लक्षित होते हैं । कवि की सबसे सुन्दर तथा सजीव रचना यही हैं । मुनि विनयचन्द मुनि विनयचन्द ने "चूनडीरास" नामक काव्य की रचना त्रिभुवनगढ में अजयनरेन्द्र के विहार में बैठ कर रची थी। अजयनरेन्द्र तहनगढ का राजा कुमारपाल का भतीजा था, जो राजा कुमारपाल के अनन्तर राज्य का उत्तराधिकारी बना था । त्रिभुवनगिरि या तहनगढ वर्तमान में करौली से उत्तर-पूर्व में चौबीस मील की दूरी पर अवस्थित है । तेरहवीं शताब्दीमें वहां पर यादव वंशीय महाराजा कुमारपाल राज्य करते थे । वि. सं. 1252 में वहां मुसलमानी राज्य स्थापित हो गया था । त्रिभुवनगिरि जयपुर राज्य का तहनगढ ही है । "चूनडीरास " में 32 पद्य हैं। चूनडी या चुनडी छपी हुई साडी को कहते हैं । प्रस्तुत कृति में चूनडी के रूपक से एक गीतकाव्य की रचना की गई है। राजस्थान की महिलायें विशेष रूप से चूनडी ओढती 1 कोई मुग्धा युवती मुस्कराती हुई अपने प्रियतम से कहती है कि, हे सुभग ! आप जिन मन्दिर पधारिये और मेरे ऊपर दया कर शीघ्र ही एक अनुपम चूनडी छपवा दीजिये, जिसस मैं जिनशासन में विचक्षण हो जाऊं । सुन्दरी यह भी कहती है कि, यदि चनडी छपवा कर नहीं ला देंगे, तो वह छीपा मुझ पर फब्ती कसेगा और उल्हाना देगा | पति इन वचनों को सुन कर कहता है - हे मुग्धे ! उस छीपा ने मुझ से कहा है कि मैं जैन सिद्धान्त के भरपूर एक सुन्दर चूनडी शीघ्र ही छाप कर दूंगा । रहस्य 1. द स्ट्रगल फार इम्पायर, भारतीय विद्याभवन प्रकाशन, प्रथम संस्करण, पृ. 55 | 2. वही, पृ. 55 । " 3. अगरचन्द नाहटा : त्रिभुवनगिरि व उसके विनाश के संबंध में विशेष प्रकाश, अनेकान 8-12, पृ. 457।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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