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________________ 137 कुछ व्रतों और मन्त्रों का फल दिखाने के लिये दृष्टान्त के रूप में लिये गये आख्यान हैं। इस श्रेणी के काव्यों में पुष्पदन्त कृत णायकुमार चरिउ, नयनन्दि कृत सुंदसणचरिउ, कनकामर कृत करकंड चरिउ, लाख कवि कृत जिणदत्त चरिउ आदि प्रमुख हैं । धनपाल कृत भविसयत्तकहा को भी इस कोटि का काव्य माना जा सकता है । इन समस्त रोमाण्टिक काव्यों में उपयुक्त करकंड चरिउ, णायकुमार चरिउ एवं सदसणचरिउ प्रथम श्रेणी के रोमाण्टिक काव्य हैं। इन काव्यों का पृथक्-पृथक् विश्लेषण न कर इनकी सामान्य प्रवृत्तियों का संक्षिप्त परिचय यहां प्रस्तुत किया जा सकता है। 1. अपभ्रश के रोमाण्टिक-काव्यों की प्रमुख विशेषता पात्रों के मनोवैज्ञानिक चरित्रचित्रण संबंधी है, यद्यपि नख-शिख वर्णन एवं वेशभूषा के चित्रण में पूर्णतया शृंगारिकता है। कथावस्तु में रोमाञ्च उत्पन्न करने हेतु साहसिक-यात्राएं तथा युद्ध एवं प्रेम का वर्णन उदात्त शैली में हुआ है। 2. अपभ्रश के रोमाण्टिक-काव्यों की कथा का आधार प्रचलित लोक-कथाएं और लोक-गाथाएं है। कवियों ने कुछ धार्मिक बातें जोडकर उन्हें चरित या कथा काव्य का परिधान पहिना दिया है। नायक को जैन धर्म का बाना पहिना कर ऐतिहासिकता और धार्मिकता के प्रयागराज में लाकर उपस्थित कर दिया है। 3. रोमाण्टिक-काव्य एक प्रकार से प्रेमाख्यानक काव्य है। इनमें बीरगाथात्मक काव्यों के समान द्ध और प्रेम को अधिक महत्व दिया गया है। यह लोक-गाथाओं और वीर-गीतों की प्रवृत्ति है या जिनके चक्र से विकसनशील महाकाव्यों का विकास होता है। इसमें सन्देह नहीं कि अपभ्रश के कवियों ने धार्मिक आवरण में रोमाञ्चक काव्य लिखे हैं। ___ 4. प्रस्तुत काव्यों में कल्पना की गगनचुम्बी उडाने एवं अतिशयोक्तियों की भरमार है। यद्यपि उनका आधार यथार्थ जीवन है, तो भी कल्पना की रंगरेलियां आंखमिचौनी खेलती हई दृष्टिगोचर हो जाती हैं। पुष्पदन्त के णायकुमार वरिउ में नायक नागकुमार सैकड़ों राजकूमारियों से विवाह करताहै, जिसका यथार्थ आधार यह है कि सामन्ती वीरयग में सामन्त लोग युद्ध में विजित राजाओं की राजकुमारियों से विवाह करते थे। इस प्रकार बहुविवाह करने की प्रथा विकसित थी। कवियों ने इसी संभावना के बल पर अतिशयोक्तिपूर्ण घटनाओं का अंकन किया है। 5. साहसिक-कार्य, बीहड यात्राएं, उजाड नगर अथवा भयंकर वन में अकेले जाना, उन्मत हाथी से अकेले ही यद्ध करना, यक्ष, गन्धर्व और विद्याधरादि से यद्ध करना, समद्र-यात्रा और उसमें जहाज का फट जाना आदि का वर्णन मिलता है। ये वर्णन कथा में रोमाञ्च गण उत्पन्न करने के लिये उस नमक के समान हैं जो व्यञ्जन को स्वादिष्ट बनाने के लिये अत्यन्त उपयोगी है। 6. पौराणिक-काव्यों के समान रोमाण्टिक काव्यों के कथानक भी उलझे हुए और जटिल हैं। कथा के भीतर कथा की परम्परा जिसे कि 'कदलीस्तम्भशिल्प' कहा जा सकता है, सर्वत्र वर्तमान है। अवान्तर-कथाओं और भवान्तरों का वर्णन इन काव्यों की एक सामान्य विशेषता है। पूर्वजन्मों के कर्मों का फल दिखाकर शील का उन्नत बनाना एव वर्तमान जीवन को परिष्कृत करना ही इन काव्यों का उद्देश्य है। नायक आरम्भ में विषयासक्त दिखलाई पड़ेगा, पर अन्त में विरक्त होकर सन्यास ग्रहण कर लेता है तथा मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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