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7. अपभ्रंश के रोमाण्टिक-काव्यों में कथानक रूढियों का प्रचर परिमाण में उपयोग हुआ है, जिनमें से निम्न रूढियां तो अत्यन्त प्रसिद्ध हैं :--.
(क) उजाड नगर का मिलना, वहां किसी कुमारी का दर्शन होना और उससे विवाह
हो जाना । मविसयत्सकहा इसका सुन्दर उदाहरण है ।
(ख) प्रथम-दर्शन, गुण-श्रवण या चित्र-दर्शन द्वारा प्रेम का जागृत होना। यथा
भविसयत्त कहा, णायकुमार चरिउ, सुदंसण चरिउ आदि ।
द्वीप-द्वीपान्तरों की यात्रा, समद्र में जहाज का टूट जाना, नाना प्रकार की बाधाय
और उन बाधाओं को पारकर निश्चित स्थान पर पहुंचना। यथा भविसयत्त कहा, णायकुमार चरिउ, सिरिवाल कहा आदि ।
(घ) दोहद कामना। यथा करकंड चरिउ । (ङ) पञ्चाधिवासितों द्वारा राजा का निर्वाचन । यथा करकंड चरिउ । (च) शत्रु-सन्तापित सरदार की सहायता एव युद्ध मोल लेना। यथा करकंड चरिउ,
णायकुमार चरिउ । (छ) मुनि-श्राप । यथा करकंड चरिउ, भविसयत्त कहा । (ज) पूर्व जन्म की स्मृति के आधार पर शत्रुता एव मित्रता का निर्वाह, पूर्व-जन्म के
उपकारों का बदला चकाना तथा जन्मान्तरों के दम्पतियों का पति-पत्नी के रूप में होना । यथा जसहर चरिउ, णायकुमार चरिउ, करकंड चरिउ, भविसयत्त कहा आदि ।
श्चरित्र अथवा धोखेबाज पत्नी का होना । यथा करकंड चरिठ, जसहर चरिउ, सुदंसण चरिउ आदि ।
(च) रूप-परिवर्तन । यथा करकंड चरिउ, भविसयत्त कहा आदि ।
दूसरी आध्यात्मिक काव्य-प्रवृत्ति को कुछ विद्वानों ने रहस्यवादी काव्य-प्रवृत्ति भी कहा है । इस विधा में सबसे प्राचीन जोइंदु कृत परमप्पयासु-जोयसारु एवं मुनि रामसिंह कृत पाहुडदोहा तथा सावयधम्मदोहा नामक दोहा-ग्रन्थ प्रमुख हैं। अपभ्रंश के इस श्रेणी के साहित्य पर एक ओर कुन्दकुन्द के समयसार का प्रभाव है, तो दूसरी ओर उपनिषद् तथा गीता के ब्रहमवाद का प्रभाव परिलक्षित होता है। इसमें आत्मा-परमात्मा, सम्यक्त्व-मिथ्यात्व एवं भेदानुभूति का बहुत ही सुन्दर चित्रण हुआ है। परमात्मा का स्वरूप बतलाते हुए कवि जोइंदु ने कहा है:--
वेयहिं सत्यहिं इंदियहिं, जो जिय मुणहु ण जाइ । णिम्मल झाणहं जो विसउ जो परमप्पु अणाइ ॥ (1123)
अर्थात्-केवली की दिव्यवाणी से, महामुनियों के वचनों से तथा इन्द्रिय एवं मन से भी शुद्धात्मा को नहीं जाना जा सकता, किन्तु जो आत्मा निर्मल ध्यान द्वारा गम्य है, वही आदिअन्त रहित परमात्मा है।