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भाषा पर इनका पूर्ण अधिकार था । इन्होंने संस्कृत एवं हिन्दी में मौलिक कृतियां निबद्ध कीं और कृत ग्रन्थों की संस्कृत टीकाएं लिखीं । यद्यपि संख्या की दृष्टि से इनकी कृतियां अधिक नहीं हैं फिर भी जो कुछ हैं वे ही इनकी विद्वत्ता एवं पांडित्य को प्रदर्शित करने के लिये पर्याप्त हैं । श्री नाथूराम जी प्रेमी ने इनके "तत्वज्ञानतरंगिणी, सिद्धान्तसार भाष्य, परमार्थोपदेश, दीश्वर फाग, भक्तामरोद्यापन, सरस्वती पूजा" ग्रन्थों का उल्लेख किया है । 2 पंडित परमानन्द तीन उक्त रचनाओं के अतिरिक्त सरस्वती स्तवन, आत्म सम्बोधन आदि का और उल्लेख किया है। इधर राजस्थान के जैन ग्रन्थ भंडारों की जब से लेखक ने खोज एवं छानबीन की है ब से उक्त रचनाओं के अतिरिक्त इनके और भी ग्रन्थों का पता लगा है । अब तक इनकी जितनी चनाओं का पता लग पाया है उनके नाम निम्न प्रकार हैं:
संस्कृत ग्रन्थ
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46282
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1. आत्मसंबोधन काव्य 2. ऋषिमंडल पूजा 4 3. तत्वज्ञान तरंगिणी पूजाष्टक टीका
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इसमें शुद्ध
तत्वज्ञानतरंगिणीः --- इसे ज्ञानभूषण की उत्कृष्ट रचना कही जा सकती है । आत्म तत्व की प्राप्ति के उपाय बतलाये गये हैं । रचना अधिक बड़ी नहीं है किन्तु कवि ने उसे 18 अध्यायों में विभाजित किया है इसकी रचना सं. 1560 में हुई थी जब वे भट्टारक पद छोड के थे और आत्मतत्व की प्राप्ति के लिये मुमुक्ष बन चुके थे । रचना काव्यत्वपूर्ण एवं विद्वत्ता लिये हुए है ।
16. भट्टारक शुभचन्द्र
I
शुभचन्द्र भट्टारक विजयकीति के शिष्य थे । वे अपने समय के प्रसिद्ध भट्टारक, साहित्य प्रेमी, धर्म प्रचारक एवं शास्त्रों के प्रबल विद्वान् थे ।
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11.
2. देखिये पं. नाथूरामजी प्रेमी कृत जैन साहित्य और इतिहास पृ. 382
3.
देखिये पं. परमानन्द जी का " जैन ग्रन्थ प्रशस्ति-संग्रह "
राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रन्थ सूची भाग चतुर्थ पू. सं. 463
पंचकल्याणकोद्यापन पूजा
भक्तामर पूजा श्रुत पूजा?"
सरस्वती पूजा सरस्वती स्तुति
शास्त्र मंडल पूजा 10 दशलक्षण व्रतोद्यापन पूजा 11
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"
110
"
17
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राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रन्थ सूची भाग चतुर्थ 1.
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650
523
537
515
सं. 657
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