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और रहते हुए उन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखे, उनकी टीकायें लिखीं और वहां अध्यापन कार्य भी सम्पन्न किया । लेकिन संवत् 1282 में आशाधर जी नालछा से सलखणपुर चले गये जहाँ जैन अच्छी संख्या में रहते थे । मल्ह का पुत्र नागदेव भी वहां का निवासी था जो मालवराज्य की चुंगी विभाग में कार्य करता था तथा यथाशक्ति धर्म-साधन भी करता था । नागदेव की पत्नी के किये उन्होंने रत्नत्रय विधान की रचना की थी।
आशाधर संस्कृत के महान् पंडित थे तथा न्याय, व्याकरण, काव्य, बलकार, शब्दकोष, धर्मशास्त्र, योगशास्त्र और वैद्यक आदि विषयों पर उनका पूर्ण अधिकार था।वे प्रतिमासम्पन्न विद्वान् थे। उनकी लेखनी केवल जैन ग्रन्थों तक ही सीमित नहीं रही किन्तु अष्टांगहृदय, काव्यालंकार एवं अमरकोष जैसे ग्रन्थों पर उन्होंने टीकायें लिख कर अपने पाण्डित्य का भी परिचय दिया। लेकिन खेद है कि ये सभी टीकायें वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। विभिन्न विद्वानों ने उन्हें कवि कालिदास, प्रज्ञापंज एवं नवविश्वचक्ष जैसी उपाधियों से उनका अपने ग्रन्थों में अभिनन्दन किया है। वास्तव में संस्कृत भाषा के ऐसे धुरन्धर विद्वान् पर जैन समाज को ही नहीं किन्तु समस्त देश को गर्व है।
महापंडित आशाघर की 18 रचनाओं का उल्लेख मिलता है, लेकिन इनमें 11 रचना उपलब्ध हैं और सात रचनायें अनुपलब्ध हैं। इन रचनाओं का सामान्य परिचय निम्न प्रकार है :--
1. प्रमेयरत्न कर:-यह ग्रन्थ अभी तक अप्राप्त है । ग्रन्थकार ने इसे स्याद्वादविद्या का निर्मल प्रसाद बतलाया है ।
2. मरतेश्वराभ्युदयः--यह काव्य ग्रन्थ भी अप्राप्त है । इस काव्य में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के अभ्युदय का वर्णन है ।
3. ज्ञानदीपिका:-यह सागार एवं अनगारधर्मामत की स्वोपज्ञ पंजिका है । यह भी अभी तक अनुपलब्ब ही है ।
____4. राजमती विप्रलंभ:-यह एक खण्ड काव्य है जिसमें राजमती और नेमिनाथ के वियोग का वर्णन किया गया है । रचना स्वोपज्ञ टीका सहित है लेकिन अभी तक अनुप
5. अध्यात्मरहस्य:--इस रचना को खोज निकालने का श्रेय श्री जुगल किशोर मुख्तार को है। इसकी एक मात्र पाण्डलिपि अजमेर के भटटारकीय शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है । प्रस्तुत कृति मुख्तार सा. द्वारा हिन्दी टीका के साथ सम्पादित होकर वीर सेवा मन्दिर से प्रकाशित हो चुकी है। यह अध्यात्म विषय का ग्रन्थ है । आचार्य कुन्दकुन्द ने आत्मा के बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा ये तीन भेद किये हैं जबकि आशाधर ने स्वात्मा, शुद्धस्वात्मा एवं परब्रह्म इस प्रकार तीन भेद किये हैं ।
___6. मूलाराधना टीका:-यह प्राकृत भाषा में निबद्ध शिवार्य की भगवती आराधना को टीका है।
7. इष्टोपदेश टीका:-आचार्य पूज्यपाद के प्रसिद्ध ग्रन्य इष्टोपदेश की टीका है ।
8. भूपाल चतुर्विंशति टीका:--भूपाल कवि कृत चतुर्विंशति स्तोत्र को टीका ३ जो विनयचन्द्र के लिये बनायी गयी थी ।
--meena